बुद्ध के विचार।।बुद्ध की बातें। Thoughts of budha

बुद्ध के विचार



'आत्मदीपो भव:' यानी खुद को प्रकाशित करना या जीतना ही आज की सबसे बड़ी जीत है, यही अमृत वाक्य आज नफरत के बीच आपको सच्ची शांति दे सकता है।

जब भी गौतम बुद्ध का नाम मेरे मन में आता है, तो उनकी एक कहानी मुझे हमेशा याद आ जाती है: एक बार वे अपने शिष्यों से संवाद कर रहे थे, तभी गुस्से से भरा एक व्यक्ति आ गया और उन्हें जोर-जोर से अपशब्द कहने लगा। महात्मा बुद्ध बेहद शांत भाव से मुस्कुराते हुए सुनते रहे। बुद्ध तब तक उसे सुनते रहे जब तक वह थक नहीं गया। शिष्यवृंद गुस्से से भरे जा रहे थे। वह व्यक्ति भी आश्चर्यचकित था। हारकर उसने महात्मा से पूछा- "मैं आपको इतने कटु वचन बोल रहा हूँ, लेकिन आपने एक बार भी जवाब नहीं दिया। क्यों?" बुद्ध ने उसी शांत भाव से कहा- "यदि तुम मुझे कुछ देना चाहो और मैं नहीं लूं। तो वह सामान किसके पास रह जायेगा?" व्यक्ति ने कहा - "निश्चय ही वो मेरे पास रह जायेगा।" बुद्ध ने कहा- "आपके अपशब्द किसके पास रह गये?" व्यक्ति गौतम बुद्ध के पैरों पर गिर गया पड़ा। 

यही बुद्ध की ताकत थी। यही बुद्धत्व का सार है। क्षमा, संयम, त्याग' मुझे लगता है, इन्हीं सब बातो की आज सबसे ज्यादा जरूरत है।

इतने कठिन समय में अपने प्रेरक जीवन और शिक्षा के साथ बुद्ध बहुत प्रासंगिक है। उनका आदर्श जीवन, उनकी शिक्षा हमें वो मार्ग दिखा सकती है जिन पर चलकर विपत्ति काल से बाहर निकला जा सकता है। मानवता के प्रति करुणा, लाचारों के प्रति स्नेह प्रकट होता है। पशु-पक्षियों तक के प्रति हमारे भीतर करुणा और भाव उत्पन्न होता है। 

इन बातो को मन में स्थापित करने में बुद्ध के वचनो का बहुत बड़ा योगदान है। 'हर दुख के मूल में तृष्णा' इस बेहद सहज से लगने वाले वाक्य के माध्यम से बुुद्ध ने हमारे जीवन की सबसे महान व्यथा को पकड़ा है, हमारे जीवन की सबसे बड़ी पीड़ा को हमारे सामने अनावृत किया है। यदि हम अपने जीवन के हर कष्ट-पीड़ा-दुखों पर नजर डालें तो मूल में एक ही बात मिलेगी-तृष्णा या लालच।

बुद्ध की बातें

 उनका स्पष्ट मत था कि सहेजने मे नहीं, बाँटने में ही असली खुशियां छिपी हुई है। त्याग के साथ ही हमारे खुशियों की दिशा में सफर शुरू होता है। वे खुद संसार को दुखमय देखकर राजपाट छोड़कर संन्यास के लिए जंगल निकल पड़े थे।

परिवार का त्याग करना, वैभव छोड़ना बहुत मुश्किल काम है। फिर राजसी वैभव की तो बात ही अलग है। लेकिन उन्होने किया और इसी का संदेश भी दिया। सत्य की तालाश में आयी सैकड़ो अड़चनो के सामने वे इसी तरह से अविचल रहे। 2500 साल पुरानी बुद्ध की सीख से आज तक हमारे मन प्रकाशित होते हैं। समाज में करुणा, दया और सेवाभाव के समावेश से ही बेहतर दुनिया की कल्पना की जा सकती है।
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