आत्मज्ञान क्या है।आत्मज्ञान अर्थ ।।what is self-knowledge
आत्मज्ञान का अर्थ है, 'स्व' का बोध। वही बोध जो गौतम बुद्ध ने अनुुुभव किया था। लोगों का यह विश्वास है कि गौतम बुद्ध भगवान विष्णु के अवतार थे, इसलिए उनके पास ऐसा ज्ञान था।
लेकिन किसी चीज पर विश्वास करना एक बात है, और सच्चाई का अपने भीतर एहसास करना दूसरी बात है।
आप अपने तर्कों के सहारे किसी चीज पर विश्वास कर सकते हैं, लेकिन आप ये भी जानते हैं कि तर्क से सत्य को झूठ और झूठ को सत्य साबित किया जा सकता है, जो कि अधिकतर वकील करते भी हैं।
सच जानना है तो विश्वास करना बंद करके, तर्क से ऊपर उठकर सत्य की खोज करनी होगी, जो कि स्वयं के भीतर ही हैं। या 'आप स्वयं' ही हैं। आपका विश्वास आपको सत्य पहचानने से रोकता है। जब आप किसी ऐसी चीज पर विश्वास कर लेते हैं जिसे आप नही जानते, तब वही आपके लिए सत्य हो जाता है, भले ही वास्ताव में वो सत्य हो या न हो।
इंसान के इस दुनिया मे अस्तित्व के कुछ पहलू भौतिक हैं और कुछ अभौतिक। जैसे कुछ महसूस करना इंसान का भौतिक पहलू है। अगर आप भौतिक आयाम से परे जा सके तो महसूस करना और महसूस न करना जैसा कोई चीज आपके अंदर नही रहेगा। तब बस और बस आप होंगे। वही 'आप' जिसके इस भौतिक आयाम से गमन कर जाने पर शरीर, भावनाएं, विचार आदि सभी भौतिक पहलू नष्ट हो जाते हैं।
आप जिसे दुख या सुख कहते हैं सौभाग्य से उसका अस्तित्व बस इस भौतिक दुनिया में ही हैं, जो कि बस मनोवैज्ञानिक नाटक है। आप अपनी भौतिकता को ही सबकुछ मान लेते हैं, इसलिए भौतिक संसार मे अगर कुछ ऐसे बदलाव हो जायें जिसकी आपने इच्छा नही की थी, तो आप दुख का अनुभव करते हैं।
लेकिन आप भौतिकता से परे हैं। ये देखने के लिए आपको अपने तीसरे नेत्र को और विकसित करने की आवश्यकता होगी। तीसरा नेत्र आपके माथे पर आपके दो भौतिक नेत्रों की तरह नही लगा रहता। बल्कि ये भीतर देखने की प्रक्रिया है, जो आपके सारे आयामों को अलग-अलग करके दिखाता है।(शिव के फोटो में दिखाया गया नेत्र इंसानो की कल्पना मात्र है)
आप अभी अपने मन और शरीर को अलग अलग अनुभव कर सकते हैं लेकिन ये दोनों ही भौतिक हैं। इनसे परे भी आपके अनेक पहलू हैं। योग की प्राचीनतम विद्या, जो स्वयं आदियोगी ने दिया है, उसमें आप इनका वर्णन पढ़ सकते हैं। सिर्फ मन के 16 पहलुओं का वर्णन किया गया है।
लेकिन मैं फिर कहूंगा, आप पढ़ के बस जान पाएंगे, लेकिन उसकी अनंदमयता अनुभव करने के लिए आपको 'स्वयं' के इन सभी पहलुओं को पढ़ना होगा। वरना ये वैसा ही होगा कि किसी ने मिठाई खा के आपको बता दी कि मीठी है, लेकिन ऐसे जानने से भी क्या फायदा।
आत्मज्ञान पाने के रास्ते मे मुख्य प्रश्न, 'मैं कौन हूँ' का जवाब बस आप अपने भीतर से ही पा सकते हैं। इसकी शुरुआत 'स्वयं' को पढ़ने से की जा सकती है। मतलब हमारी हर एक चीज कैसे काम करती है, हमारा शरीर, हमारा मन, हमारी भावनाएं आदि। इन भौतिक आयामों को आप जैसे-जैसे परत-दर- परत भेदते जाएंगे जाएंगे, वैसे-वैसे आपका 'स्व' का अनुभूति बढ़ेगा, और आप भौतिक आयामों से परे होकर भौतिकता को स्पष्ट देख पाएंगे। लेकिन अभी तक आप बस भौतिक्ताओं को ही स्पष्ट देख पाएंगे।
आत्मज्ञान का अर्थ
जब आप 'स्व' की अनुभूति पा लेंगे तो ये ऐसा होगा जैसे आपने सभी भौतिक्ताओं को(शरीर,मन आदि) धारण किये हुए ही मृत्यु का अनुभव किया हो।
या फिर यूँ कहे, कि तब आपके लिए मृत्यु और जीवन में कोई अंतर नही रह जाएगा। क्योंकि मृत्यु लोग उसको ही कहते है जब जीवन शरीर से जुदा हो जाता है। और ये अनुभूति बस एक क्षण मे ही हो जाएगा। जैसा कि आपने पढ़ा है गौतम बुद्ध ने आत्मज्ञान पाने के लिए बहुत सारे योग विद्याओं का सहारा लिया, लेकिन उन्हें कोई फायदा नजर नही आ रहा था। फिर अचानक ही एक दिन उन्हें, एक क्षण में, ज्ञान प्राप्त हो गया। उस 'ज्ञान प्राप्त होने का' यही अर्थ है।
'स्व' जीवन ही है। 'आप जीवन हैं'। आप ही इन भौतिक्ताओं को छोड़ देते हैं। तो 'स्व' का अनुभव यही है।
लेकिन यहाँ भी वही बात है। ये आपके लिए बस जानकारी से ज्यादा और कुछ नही है। लेकिन आप अपनी भौतिक पहलुओं को समझने में बाहर से अवश्य मदद ले सकते हैं।
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