मैं कौन हूँ।। अंतरात्मा क्या होती है

मैं कौन हूँ


आज हर इंसान अपनी भौतिक सुखों का इतना बड़ा गुलाम हो गया है कि वह खुद को ही नही पहचानता।

अध्यात्म से जुड़ा एक बड़ा ही मशहूर प्रश्न है: 'मैं कौन हूँ?' कुछ लोग इसे बकवास समझते हैं और कुछ को लगता है ये बहुत ऊपर की बात है।


आप मुझे बताइये, खुद को जानना बहुत ऊपर की बात कैसे है? अगर आप खुद को ही नही जानते तो आपके होने का भी क्या मतलब है?  जिन लोगो को पागलखाने में रख दिया जाता है उनमें और आपमे क्या फर्क है?

और ये तो निश्चित ही है कि आपकी भौतिक अस्तित्व की जो भी पहचान है उसके अलावा भी आप कुछ तो जरूर हैं।


(तपकर निखरने की कला)


ये शरीर आपका है, आपके अंदर की भावनाएं आपकी है, आपके विचार आपके हैं। आप इन सब चीजों को अलग-अलग महसूस कर सकती हैं, कि ये मेरा शरीर है जो सबसे ज्यादा भौतिकता से जुड़ा है , ये मेरी भावनाये हैं, लेकिन इन सब मे स्वयं आप कहाँ हैं?


इंसान के जिस अभौतिक स्वरूप की चर्चा की जाती है जो भौतिकता से परे है, वह जीवन ही है।                                   और वही आप हैं।  "आप जीवन हैं।"

जब आप खुद को जान जाएंगे, तो आप पाएंगे कि इस दुनिया की हर चीज भौतिक है। लेकिन आप अभौतिक हैं। और आपके जो भी भौतिक अस्तित्व हैं वो इस भौतिकता से जुड़ने के साधन मात्र है।


उसके बाद जो होगा वो आप अभी कल्पना भी नही कर सकते।आप आज जिसे दुख या परेशानी मानते है वो आपको "मन मे उपजा एक मनोवैज्ञानिक नाटक " जैसा प्रतीत होगा।


आपको ये अनुभव करना ही होगा, कि आप कौन है। ये कोई भी बड़ी बात नही है। इंसान होने के नाते ये बहुत ही नार्मल बात है, लेकिन हमने इसे हौव्वा बनाकर रखा है, क्योंकि हम क्षणिक सुखों के गुलाम बन चुके हैं।


 अंतरात्मा क्या होती है

कुछ लोग मानते हैं कि हमारे अंदर भगवान का अंश है, जिसे लोग आत्मा या अंतरात्मा कहते हैं। और उनका ये मानना होता है कि वही आत्मा शरीर से निकल जाता है तो इंसान मर जाता है। उनलोगों के अनुसार, अंतरात्मा से जुड़कर ही मुक्ति पा सकते हैं।

लेकिन आप किससे जुड़ने की बात कर रहे है?….अंतरात्मा से??

अंतरात्मा क्या है, आपको पता भी है? क्या आप मेरा प्रश्न समझ रहे है?

अगर आप ये कहेंगे कि आपके अंदर जो परमात्मा का अंश है वही अंतरात्मा है तब आप मेरा प्रश्न नही समझ रहे हैं।


देखिये, आपके अंदर जो कुछ भी है वो जीवन है, जिसके शरीर से जुदा होने के बाद लोग उस इंसान को मृत घोषित कर देते हैं।

अब आप उस जीवन को आत्मा कहिये या अंतरात्मा कहिए या परमात्मा का अंश कहिए। इससे कोई फर्क नही पड़ता।

'आप ही' इस शरीर को छोड़कर चले जाते हैं जब ये शरीर आपके धारण करने लायक नही रह जाती।

तो, जब आप अंतरात्मा से जुड़ने की बात करते हैं, तो आप मूलरूप से खुदसे जुड़ने की बात कर रहे हैं।…. खुद से जुड़ना? कितना बचकाना बात है ये। 

आप जो हैं, सो हैं। आप अपनेआप से जुड़ने की बात कर रहे है? लेकिन आप तो बस आप हैं, अपने आप मे परिपूर्ण हैं। यहाँ जुड़ने या अलग होने का बात ही करना बचकाना है।


(जीवन का भौतिक एवं आध्यात्मिक लक्ष्य)


दरअसल हुआ ये है, की आपने अपने भौतिक भोगों को ही सब कुछ मान लिया है। आपको लगता है कि आप अपने शरीर, भावनाएं, विचारों आदि से मिलकर बने हैं। लेकिन नही। ये सब आपके हो सकते हैं, लेकिन आप खुद ये नही हैं।


आपका शरीर, आपकी भावनाएं, आपके विचार, ये सारी चीजें भौतिक हैं। और इस भौतिक आयाम में रहने के लिए ये सब जरूरी है।


लेकिन ये सब 'आपके' नियंत्रण में होना चाहिए। मैं यहाँ 'आप' शब्द का इस्तेमाल आपके भौतिक अस्तित्व के लिए नही कर रहा हूूँ । मैं उस 'आप' की बात कर रहा हूँ, जिसने इन भौतिक्ताओं को धारण कर रखा है।


(क्या जब हम अपने आप की खोज में निकलते है, तो हम कुछ खो दिए रहते है?)

तो यहाँ मुख्य बात ये है कि 'आप' भौतिकता के चकाचौंध में खुद को वो समझ रहे हैं, जो आप नही हैं।

हमें जरूरत है भौतिकता से परे जाने की, तब ही हम अपने आप को पा सकेंगे। उसके पश्चात कोई भी भौतिक वस्तु, या इंसान, या कोई घटना आपको दुखी नही कर पायेगी।


भौतिक दुनिया मे बदलाव एक ऐसा नियम है जो प्रकृति ने तय किया है।।                                                                        इसलिए जब आप बदलाव का विरोध करने का कोशिश करेंगे, तब प्रकृति जबरन वो बदलाव आपसे स्वीकार कराएगी, तो दर्द तो होगा ही।


लेकिन जब आप भौतिकता से परे आ जाते हैं तब प्रकृति के साथ आपका ऐसा तालमेल हो जाता है की आप हर बदलावों को सहजता स्वीकार कर लेते हैं।



Next Post Previous Post
2 Comments
  • बेनामी
    बेनामी 22 जुलाई 2022 को 6:21 pm बजे

    Kiya ham bi apene app ko Jan sakte hai

    • Spiritual world
      Spiritual world 28 जुलाई 2022 को 8:21 am बजे

      हाँ बिल्कुल, बल्कि अपने आप को जानना जीवन की सबसे प्रथम चीज होनी चाहिए। अगर आप स्वयं को जाने बिना कुछ भी करेंगे तो वो निश्चित ही आपके जीवन की प्रकृति के अनुकूल नही होगा। अगर होगा भी, तो वो एक संयोग ही कहा जाएगा, क्योंकि आप स्वयं को नही जानते। यही कारण है कि सबको अपने जीवन मे चाहिए खुशी, लेकिन मिलता दुख है। कभी-कभी संयोग से ही खुशी मिलती है।

Add Comment
comment url