कर्म के नियम।।Law of karma
कर्म का नियम
हमारे पौराणिक ग्रंथों में कर्म के नियम की व्याख्या कि गयी है। इसमें ये कहा गया है कि,
प्रत्येक कर्मों का कोई न कोई प्रभाव जरूर होगा, और उन प्रभावों से कोई भी बच नही सकता।
मान लीजिए, एक बहुत ही नेक इंसान है जिसमे कोई बुराई नही है, और एक दूसरा इंसान है जो कि बहुत बड़ा अपराधी है सैकड़ों मासूमो का जान ले चुका है।
('मैं कौन हूँ?'।।अंतरात्मा क्या होता है)
अब अगर ये दोनों व्यक्ति किसी बहुत ऊंची इमारत से गिरते हैं, तो दोनो की ही मृत्यु तय है।
प्रकृति के जितने भी नियम है, वो सब पे एक समान लागू होते हैं।आप आग में हाथ डालेंगे तो हाथ जलेगा ही जलेगा।
न्याय अन्याय इंसानो द्वारा बनाया गया है। चूँकि ये समाज हमने बनाया है, तो सभी लोग एक समान अधिकार से रहे, कोई ताकतवर इंसान किसी कमजोर का शोषण न करे, इसके लिए हमने ही कानून बनाये है।
अगर किसी का मर्डर हो जाता है, तो उस मर्डर करने वाले को क्या भगवान सजा देंगे? भगवान को सजा देना ही रहता तो वो तो मर्डर होने ही नही देते। या कुछ ऐसा करते कि अगर कोई मासूम इंसान पे गोली चलाता है, तो वो गोली की दिशा ही पलट जाए और गोली चलाने को ही लगे। मेरे ख्याल से आपके भगवान इतने शक्तिशाली तो होंगे ही।
लेकिन ऐसा तब तक नही होता जब तक कि बंदूक ही वैसी न बनाई गई हो। अगर किसी पे कोई गोली चलाता है तो गोली उसीको लगती है जो निशाने पे होता है।
प्रकृति की नजर में ये कोई मायने नही रखता की कौन कितना नेक है और कितना बड़ा बदमाश।
(स्वामी विवेकानंद जी ने ऐसे पढ़ी पुस्तक)
शेर हिरण को मार कर खा जाता है, ये हम अपने नजरिये से देखे तो ये पाएंगे कि हिरण के साथ अन्याय हुआ। लेकिन प्रकृति ने तो बनाया ही ऐसा है कि शेर को पेट भरने के लिए किसी को मारना ही पड़ेगा।
इसलिए ये न्याय-अन्याय हमारा ही बनाया हुआ है और इसको मद्देनजर रखते हुए सजा निर्धारित करना हमारे कानून का काम है।
कर्म का नियम
प्रकृति के नजर में न्याय-अन्याय जैसी कोई चीज नही होती।
लेकिन, आप यदि कोई कर्म तो वो आपको को किस प्रकार प्रभावित करता है, ये बात आपके लियेे बहुुुत महत्वपूर्ण है।
अगर आप कुछ ऐसा करते जिसे आप गलत मानते हैं, तो वो आपको अपराधबोध की आग में झोंक देता है।
आप किसी चीज को या किसी काम किस नजरिये से देखते हैं ये बात बहुत मायने रखती है।
अगर कोई भूखा शेर किसी आदमी के बच्चे को मार कर खा जाए, तो वो तृप्ति का एहसास करेगा, लेकिन यही यदि आप करेंगे, तो आपका सोना मुश्किल हो जाएगा।
(जीवन का लक्ष्य: भौतिक एवं अध्यात्मिक)
आपका अपराधबोध या तो इतना बढ़ सकता है कि वो आपको मानसिक रूप से विक्षिप्त कर दे, या फिर उस काम के प्रति आपका नजरिया ही बदल जाये।
इसलिये भले ही प्रकृति द्वारा निर्धारित किये गए कर्म के नियम सबके लिए एक समान हैं, लेकिन हमें क्या कर्म करना है, स्वयं ही निर्धारित करना होता है।