वैराग्य का अर्थ।। अंतरात्मा।। स्व की खोज।
'स्व' की खोज (अंतरात्मा)
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अंतरात्मा |
अंतरात्मा मानव की वह के इकाई है जो यह एहसास दिलाती है कि हम शरीर और मन के अलावा भी कुुुछ हैंं, जो हमे यह बोध देती है कि मृत्यु सिर्फ शरीर की होती है। अंतरात्मा तक पहुंचने के लिए वैराग्य एक सीढ़ी की तरह है।
अंतरात्मा
संक्षेप में कहूँ तो, नही। 'स्व (अंतरात्मा)' की खोज में निकलने का यह मतलब नही होता की आपने कुछ खो दिया। बल्कि यह तो ऐसा है कि आप वो खोजने जा रहे है जिसकी वास्तव में आपको जरूरत है। लेकिन इसके लिए आपके अंदर वैराग्य उत्पन्न होना आवश्यक है।
वैराग्य का अर्थ
वैराग्य का मतलब है इस दुनिया के क्षणभंगुर सुखों का चाहत खत्म हो जाना।
जब ऐसा होता है तब आप निकलते है उस विराट शांति की खोज में जो आपके लिए दूसरे आयामों के दरवाजे खोल देता है जो कि आपके अंदर ही है, उसे ही अंतरात्मा कहा जाता है।
जब आप खुद को पूरी तरह से जान लेते है, कि आप कौन है? आपके होने का मकसद क्या है? आप जीवन का एक हिस्सा हैं लेकिन जीवन का मतलब क्या है? जब आप इन सारे सवालों के जवाब पा लेते है तब वह विराट शांति स्वतः ही आपको अपना लेती है।
अब वैरागी भी दो तरह के होते हैं, एक तो वो जो महात्मा बुद्ध हुए थे जिन्होंने भौतिक शरीर तथा भौतिक सुखों की असलियत को करीब से देखा था, और उसकी क्षणभंगुरता देखकर शाश्वत सत्य की खोज मे निकल पड़े थे।
दूसरे वो जिन्हें या तो अपने प्रियजनों से धोखा मिला होता है या अपने किसी प्रिये को खो दिए रहते है।
लेकिन यह वैराग्य नही है, ये आपके अंदर भावनाओं की उठी तूफान का नतीजा होता है जो आपके अंदर वो दुख झेलने के कारण उठी होती है। आप उन भावनाओ के वशीभूत होकर एक वैरागी की तरह सोचने लगते है। हालांकि अगर वो अपने वजूद की सच्चाई को जान लेते है तो फिर वो भी इस मायाजाल के बंधन से मुक्त हो सकते हैं।
अधिकांश लोगों में ये भावनाएं बस कुछ चंद दिनों के लिये होती है तथा उनके वैरागी मन के ऊपर फिर से सांसारिक सुखों का वर्चस्व स्थापित हो जाता है। कुछ लोगो मे ये ज्यादा दिन तक रहता है लेकिन फिर भी इसे भावनाओ का गुलाम बनना ही कहा जाएगा। जबकि एक वैरागी अपने सूझबूझ के नतीजतन सांसारिक सुखों से, इस मायाजाल से, अपने भावनाओं से ऊपर उठ चुका होता है।
स्व की खोज
गौतम बुद्ध को किशोरावस्था तक दुनिया के किसी भी दुख का कोई एहसास नही हुआ था। उनके पिता एक राजा थे और उन्होंने अपने बेटे को दुनिया के हर दुखो से दूर रखने की कोशिश की थी, क्योंकि सिद्धार्थ (गौतम बुद्ध) के जन्म के समय किसी ज्योतिषी ने यह भविष्यवाणी की थी कि यह बालक या तो बहुत बड़ा राजा बनेगा या बहुत बड़ा सन्यासी बनेगा। तो उनमें वैराग्य उत्पन्न न हो इसके लिए उनके पिता ने खास इन्तज़ाम किये हुए थे। उनके आस पास हमेशा खुशनुमा माहौल बनाये रखा जाता था।
फिर एक दिन ऐसा हुआ कि वो सारथी के साथ भ्रमण करने निकले। उन्होंने जो सबसे पहली चीज देखी वो ये था कि एक बहुत ही बूढ़ा व्यक्ति सड़क किनारे खड़ा था जिसके हाथ पांव कांप रहे थे। उन्होंने इससे पहले कभी बूढ़ा व्यक्ति नही देखा था। उन्होंने सारथी से पूछा इस इंसान को क्या हुआ, सारथी ने बताया कि ये इंसान बूढ़ा हो गया हैं। उन्होंने पूछा कि क्या सबको होना पड़ता है? उसने कहा, हाँ। क्या मैं भी हो जाऊंगा?उन्होंने पूछा। सारथी ने कहा, हाँ सबको होना पड़ता है।
यही से उनके दिमाग मे विभिन्न प्रकार के ख्याल आने शुरू हो गए। थोड़ा आगे जाने पर एक बीमार व्यक्ति मिला जिसे कोढ़ की बीमारी चरम पर थी। वो सड्क किनारे दर्द से कराह रहा था तथा पूरा शरीर घाव से भर गया था। उन्होंने फिर सारथी से पूछा , इसे क्या हुआ? सारथी ने उत्तर दिया ये बीमार व्यक्ति है इसे कोढ़ हुआ है। उन्होंने पूछा क्या ये किसी को भी हो सकता है? सारथी ने हँस कर कहा, हाँ।
थोड़ा और आगे जाने पर एक और नजारा मिला जिसमे कुछ लोग एक लाश को कंधे पर उठाकर ले जा रहे थे। सिद्धार्थ ने इससे पहले कोई लाश नही देखा था। उन्होंने पूछा, इस आदमी को लोग कहाँ ले जा रहे है? सारथी ने बताया, ये आदमी मर गया है लोग इसे जलाने ले जा रहे है। उन्होंने पूछा क्या सभी को मरना परता है? सारथी ने कहा कि हां युवराज़ सभी लोग बूढ़े होने के बाद मर जाते है।
इसके बाद से सिद्धार्थ का मन किसी भी भोग-विलाश में नही रमा। उन्होंने सोचा जब सबका नतीजा यही होना है कि बूढ़ा होकर मर जाना है तो ये क्षणिक भोगो का क्या मतलब? इसी घटना के बाद उनमे जबरदस्त वैराग्य उत्पन्न हुआ जिसके बाद उन्होंने स्वयं की तलाश, अपने अस्तित्व का मकसद, इस दुनिया के अस्तित्व का मकसद आदि प्रश्नों के उत्तर खोजने में लग गए। और अंततः बुद्ध बने।
ये कहानी यहाँ बताने का मकसद यही है कि जो सिद्धार्थ ने अपने जीवन मे पहली बार देखा वो हमलोग रोज देखते है लेकिन फिर भी संभलते नही हैं। हम ये भूल जाते है कि मृत्यु एक शाश्वत सत्य है जो कभी भी आपके पास चेतावनी देकर नही आएगी। इसलिए हमे कम-से-कम अपने आप को पहचानने की कोशिश तो करनी ही चाहिए तब ही आप असल मायनो में अंतरात्मा को जान पाएंगे।