संघर्ष से सफलता तक।।

संघर्ष से सफलता तक

संघर्ष से सफलता तक के सफर की कहानी उद्यमी मेहनती व्यक्ति ही लिखते हैं। संघर्ष को माध्यम बना कर सफलता की मंजिल तक जो पहुँचता है, वह अपनी इच्छाशक्ति से कुछ भी पा सकता है।
संघर्ष से सफलता तक का सफर तय कर उद्यमी व्यक्ति इस प्रकार चमकने लगता है, जिस प्रकार लुहार की भट्टी में पड़ा कोई धातु चमकता है।  आम इंसानो के लिए जो कार्य असंभव होता है, उसे संघर्षशील व्यक्ति पूरा करके ही चैन लेता है, और यही एक असफल व्यक्ति और एक सफल व्यक्ति के बीच की दूरी है।

संघर्ष से सफलता तक।।
संघर्ष से सफलता तक

जीवन की गति का एक बड़ा सत्य यह है, कि न चाहते हुए भी दुख एक अनिवार्य निवेश की भांति मिल जाता है।
सुख का साथ भले ही लंबा हो, पर दुख का छोटा सा टुकड़ा भी इस सुख पर बहुत भारी पड़ जाता है।
 
कोरोना महामारी का समय भले ही हमें तोड़ रहा है, लेकिन इन दिनो घर में अधिक समय गुजारने का एक फायदा यह हुआ है, कि प्रकृति को नज़दीक से देखने की मोहलत मिल गयी। 

"हरे-भरे इठलाते पेड़ो मे अभी पतझड़ आया था, देखा कि टहनियो से पत्तियों का श्रृंगार छीन गया और वे कंकाल की भांति हो गये।"

दूर तक जहां भी निगाहे जाती थीं, आसमान को छूती केवल निष्प्राण टहनियां ही दिखती थीं। 
सबसे आश्चर्य तो अमृतफल बेल के वृक्ष को देखकर होता था:  वीरान पत्रहीन पेड़ की फुनगी से लेकर नीचे तक बेल के बड़े-छोटे फल।

 कितने दानी होते हैं, वृक्ष, अपने दुर्दिन में भी मानव सेवा करते हुए नहीं अघाते। बाकी गुलमोहर, अमलतास, पलास और सेमल के क्या कहने। 

अधिकांश वृत्त जब खिजा की मार सहते हैं, उस समय ये फूलदार विशाल पेड़ खिल-खिलकर मनमोहक दृश्य           प्रस्तुत करते हैं। साथ ही संदेश भी देते हैं कि          
            "जो तपता है वही निखरता है।"
देखते देखते नयी पत्तियो कोपलों और फूलों से डालियाँ भर जाती हैं और पेड़ो में नवजीवन आ जाता है, हरे रंग में कितनी विविधता है, एक बार आसपास देख लें।
पत्तियों से लेकर शाखो तक घानी, हरा गहरा हरा नवजात शिशु की कोमल कमनीय लाल त्वचा सी।

कितनी बेचैनी से पेड़ो ने प्रतीक्षा की होगी अपने शृंगारिक दिन के फिर से लौटने की। 
हम मनुष्य भी अपने भय और दुख के दिन बीतने की प्रतीक्षा कर रहे है। हमे सब्र और आत्मविश्वास के साथ अच्छे दिन की प्रतीक्षा करनी है।

 एक निश्चित समय पर ही हमें त्राण मिलता है। प्रकृति में हड़बड़ाहट नही होती। अध्यात्म और दर्शन इसी धैर्य की वकालत करते हैं। मानव मन घबरा कर या तो टुट जाता है या आत्मघाती बन जाता है।
 प्रकाश के आधिपत्य पर विश्वास कर मनुष्य को भरोसा रखना होगा कि उसमें अंधेरे को हरने की शक्ति है।

"उसका अदम्य साहस, ज्ञान और जिजीविषा रास्ता तलाश ही लेता है।" कोरोना वैक्सीन का ईजाद इसका ज्वलंत उदाहरण है।

जब तक हमारे अंदर मन मे ज्ञान, आत्मज्ञान, साहस का दीप नहीं जलेगा, बाहरी प्रकाश के कम होते ही मन व्याकुल हो जायेगा। 
अपने को जानने के लिए थोड़ा समय देना ही होगा।

हमारे गुण - दोष नितांत हमारे हैं, जिनका क्रमश:              विस्तार या अंत हम ही कर सकते हैं।                     
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1 Comments
  • Unknown
    Unknown 1 अप्रैल 2022 को 4:21 pm बजे

    आत्मा का अस्तित्व क्या है

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