परिवर्तन का प्रभाव
परिवर्तन का प्रभाव
परिवर्तन का प्रभाव अनुकूल भी हो सकता है, और प्रतिकूल भी। परिवर्त्तन प्रकृति का अटूट नियम है। लेकिन खुद पर पड़ने वाले किसी भी परिवर्तन के प्रभाव को हम बहुत हद तक नियंत्रित कर सकते हैं।
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परिवर्तन का प्रभाव |
मनुष्य के जीवन मे अनेक प्रकार के परिवर्तन होते हैं। परिवर्तन को स्वीकार करना बुद्धिमता है। बुद्धिमान व्यक्ति परिवर्तन का स्वागत करता है जबकि विवेकहीन उसका प्रतिरोध। पुरुषार्थी व्यक्ति सदैव परिवर्तन में अवसर खोजते हैं।
कई बार परिवर्तन हमारे मन एवं परिस्थितियों के अनुकूल नहीं होता। इसके बावजूद यदि हम धैर्य के साथ इसे स्वीकार करते हैं तो सफल होते हैं। जीवन मे अनेक तरह के झंझावात आते रहते हैं। वे हमें हमारे कर्मपथ से विचलित करने का प्रयत्न करते हैं, लेकिन हम इन झंझावतों को पराजित कर सकते हैं। यह हमारे संकल्प पर निर्भर करता है। संकल्प किसी भी तरह के परिवर्तन को अपने पक्ष में करने का साहस रखता है।
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परिवर्तन का प्रभाव |
तालाब में जल इकठ्ठा हो जाये तो वह सड़ान्ध पैदा करता है, क्योंकि वह लंबे समय तक एक ही स्थान पर स्थिर रहता है। उसमें कोई परिवर्तन नही होता। वर्षा काल मे तालाब का पानी बदलता है, फिर बहार आ जाती है। यह सब तालाब के धैर्य के कारण ही संभव हो पाता है। परिवर्तन को धैर्यपूर्वक स्वीकार करना ही श्रेयस्कर है।
परिवर्तन का विरोध ही हमारे दुखों का भी कारण होता है। जब कुछ ऐसा हो जाये, जो आपकी इच्छा के विपरीत है, और आप उसे सहर्ष स्वीकार नही कर पा रहे है, तो आप दुख का अनुभव करेंगे। दुखी व्यक्ति परेशानियों से बाहर निकलने के लिए उचित फैसले नही ले सकता।
अतः, हर तरह का परिवर्तन सहर्ष स्वीकार करने आना चाहिए। फिर अपने पुरुषार्थ से परिवर्तन को अवसर में तब्दील करने के लिए कार्य करना चाहिए।
जॉर्ज बनार्ड शॉ ने कहा, 'बिना किसी परिवर्तन के प्रगति असंभव है और जो लोग अपनी सोच नही बदल सकते, वे कुछ भी नही बदल सकते हैं।'
कहने का अर्थ यही है कि परिवर्तन के लिए हमें मानसिक रूप से तैयार होना होगा।
कई बार परिवर्तन की गति के साथ हमें भी कदमताल करना होता है। कहा भी गया है कि, 'परिवर्तन की ओर पहला कदम जागरूकता है। दूसरा कदम स्वीकृति है।' यदि हम परिवर्तन को स्वीकारे तो समझिए कि जागरूक हैं।