स्वामी विवेकानंद की प्रेरक कहानियां
स्वामी विवेकानंद, भारतीय संस्कृति के ऐसे महान विद्वान थे, जिनके ज्ञान के प्रकाश से पूरे संसार मे भारत के ज्ञान का प्रकाश फैला था। एक सन्यासी के रूप में विवेकानंद ने ज्ञान से युक्त अनेक ग्रंथों की रचना की थी, और उन ग्रंथो ने करोड़ों युवाओं को एक नई राह दिखाई। स्वामी जी का संपूर्ण जीवन ही सबके लिए सीख का माध्यम है।
तो आइए, स्वामी विवेकानंद के जीवन की कुछ प्रेरक कहानीयों पर नजर डालते हैं, और देखते हैं की हमें उससे क्या सीखने को मिलता है।
●स्वामी विवेकानंद और दुखी व्यक्ति
एक बार स्वामी विवेकानंद जी अपने आश्रम में विश्राम कर रहे थे, कि एक व्यक्ति उनके पास आया, जो कि बहुत दुखी लग रहा था, और कहने लगा कहा, "महाराज, मैं खूब मेहनत करता हूँ। हर काम खूब मन लगाकर भी करता हूं, लेकिन आज तक मैं कभी सफल व्यक्ति नहीं बन पाया।"
उस व्यक्ति की बातें सुनकर, स्वामी विवेकानंद ने कहा, "ठीक है! आप मेरे इस पालतू कुत्ते को थोड़ी देर घुमा कर लाए, तब तक मैं समस्या का समाधान ढूढ़ता हूँ।"
यह सुनकर वह व्यक्ति कुत्ते को घुमाने के लिए लेकर चला गया। कुछ देर के बाद वह स्वामी विवेकानंद के पास लौट आया, स्वामी विवेकानंद ने देखा कुत्ता हांफ रहा था, तो उन्होंने उस व्यक्ति से पूछा, "ये कुत्ता इतना क्यों हांफ रहा है, लेकिन तुम नही हांफ रहे, जबकि तुम भी तो उतनी दूर ही चले जितनी दूर ये चला।"
इस पर उस व्यक्ति ने कहा, "महाराज, मैं अपने रास्ते पर चल रहा था, जबकि यह कुत्ता इधर-उधर रास्ते पर भटकता रहा, और जो भी चीज देखता उसके पीछे दौड़ने लगता, जिससे ये थक गया, इसलिए ही हांफ रहा है।
इस पर स्वामी जी बड़े मुस्कुराते हुए बोले, "यही तो तुम्हारे प्रश्नों का जवाब है। यह कुत्ता इसलिए हांफ रहा है क्योंकि यह अपने लक्ष्य से बार-बार भटक रहा था, लेकिन तुम सही रास्ते पर केंद्रित रहे। तुम भी अपने जीवन मे अपनी मंजिल से दूर भटकते रहे, इसलिए ही थक तो गए लेकिन मंजिल न पा सके।
यह सुनकर उस व्यक्ति को समझ में आ गया कि यदि सफल होना है तो हमें अपने मंजिल पर ध्यान केंद्रित करना होगा। जब तक मंजिल मिल नही जाती तब तक मंजिल पाने के रास्तो पर बिना भटके आगे बढ़ना होगा।
स्वामी विवेकानंद के इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है दोस्तों, की हमें जो करना है और जो कुछ भी बनना है हम उस पर उतना ध्यान नहीं देते, जितना देने की आवश्यकता है, और दूसरों को देखकर वैसा ही हम भी करने लगते हैं। जिसके कारण हम अपनी मंजिल के पास होते हुए भी दूर भटक जाते हैं। अगर सफल होना है तो हमेशा अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
●स्वामी जी और बंदर
यह स्वामी विवेकानंद के बचपन की घटना है। तब उनका नाम नरेन हुआ करता था। एक बार नरेन बाजार से कुछ सामान खरीदकर घर लौट रहा था। रास्ते मे एक मंदिर पड़ता था, जहां अक्सर बंदरों के डेरा लगा रहता था। जब नरेन उस मंदिर के पास से गुजर रहे थे, तो एक बड़ा बंदर उनके हाथ मे थैली देखकर उनके पीछे लग गया। अब नरेन को डर लगने लगा कि अगर इस बंदर ने मुझे पकड़ लिया तो पता नही क्या होगा।
यह विचार कर उन्होंने अपनी चाल बढ़ा दी। जब उन्हीने पीछे देखा तो बंदर भी तेज गति उनके पीछे आ रहा था। अब नरेन ने दौड़ना शुरू कर दिया। पीछे-पीछे बंदर आगे-आगे नरेन।
अचानक उनके मन एक विचार उठी की, 'क्या मैं कर क्या रहा हूँ?' 'क्या मैं एक बंदर से डर गया हूँ?'
इस बात से उनके अंदर ऐसी भावना का संचार हुआ जैसे उनमे अपार साहस आ गया हो। वो वहीं ठिठक कर खड़े हो गए। जब बंदर ने यह देख तो वह भी कुछ दूरी पर खड़ा हो गया। कुछ देर खड़े रहने के बाद बंदर वापस लौट गया।
इस घटना के बाद से स्वामी विवेकानंद को अपने जीवन मे कभी डर नही लगा, क्योंकि वो समझ चुके थे डर मृत्यु का रूप है और साहस जीवन का।
●स्वामी विवेकानंद और भूतिया पेड़
उनके साहस की मिशाल देती एक और घटना उनके बचपन मे हुई थी, जिसमे वे रातभर उस पेड़ पर बैठकर बिताएं थे जो गांव से बाहर था, और लोग उसे भूतिया पेड़ मानते थे।
दरअसल गांव से बाहर एक पेड़ था जिसके बारे में यह अफवाह था कि इस पेड़ पर भूत का वास है। जो कोई भी रात में उस पेड़ के पास से गुजरता है, उसका वो भूत क्षति करता है। इस कारण से शाम होने के बाद कोई उधर के रास्ते के नही जाता था।
एक बार स्वामी विवेकानंद जी का एक दोस्त डरे सहमे उन्हें उस पेड़ की कहानी बता रहा था। इस पर विवेकानंद ने कहा, 'मैं भूतों को नही मानता, ये बस मन का भ्रम है, भूत वास्तव में नही होते हैं।'
लेकिन उनका दोस्त सहमत नही था ने कहा, 'अगर ऐसी बात है तो एक रात तुम उस पेड़ के नीचे बिताते, तुम्हे खुद ही पता चल जाएगा।'
विवेकानंद बचपन से ही बड़े साहसी थे। और अपनी बात प्रमाण के साथ पेश करने में यकीन रखते थे।
उन्होंने उसकी बात मान ली और कहा, 'ठीक है, मैं आज की रात उसी पेड़ पे बिताऊँगा।'
वे उस रात घर नही गयें, और रात भर उसी पेड़ पे बैठे रहें। अगले दिन सुबह का उजाला होने से पहले ही उनके पिता परेशान होकर उन्हें खोजने निकल गए। वे उस दोस्त के घर भी गयें, जिससे विवेकानंद की पेड़ पर रुकने वाली बात हुई थी।
अब उसने यह बात सबको बताई। तब गांव के कुछ लोग जल्दी जल्दी उस पेड़ के पास गए तो देखा, विवेकानंद उसी पेड़ पर बैठे थें। उनजे पिता ने तो उन्हें खूब डांट लगाई लेकिन उस घटना के बाद से फिर किसी को उस पेड़ से डर नही लगा।
तो दोस्तों, वैसे तो स्वामीजी के जीवन हमें पाठ पढ़ाने वाली अनेकों घटनाएं मौजूद है, लेकिन जब तक हम अपने जीवन मे उन्हें नही उतारते, तब तक हमारे लिए वो फलीभूत नही होंगे।