दिवाली पर निबंध।। दिवाली का महत्व

सबसे पहले तो आप सब लोगों को हैप्पी दिवाली। दोस्तो, दिवाली एक ऐसा त्योहार है जिसमे सम्मिलित कर्मकांडो को अगर नियमानुसार किया जाए तो अनेक लाभ लिए जा सकते हैं। तो आज हम दिवाली के कुछ उन महत्व को जानेंगे जो आम जनता की जानकारी से दूर हैं। साथ ही, अगर आप दिवाली पर निबंध खोज रहे हैं, तो यहाँ आपको उत्तम सामग्री मिल सकती है।


दिवाली का महत्व

दीपों का त्योहार 'दिवाली' जो जीवन में खुशियाँ और ऊर्जा भरता है, भारतवर्ष का एक महत्वपूर्ण और प्राचीनतम त्योहारों मे से एक है। ऐसा माना जाता है कि यह त्योहार श्रीराम के चौदह वर्ष का वनवास पूरा कर अयोध्या वापस आने की खुशी में मनाया जाता है। आज हम जीवन मे इस त्योहार के महत्व तथा उसके पीछे के विज्ञान को जानेंगे। 

दोस्तों, हमारी संस्कृति में मनाये जाने वाले प्रत्येक पर्व या त्योहारों का हमारे जीवन पर गहरा असर होता है, तथा इसके प्रभाव से जीवन मे सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। वैसे ही दिवाली मनाने के पीछे भी पूरा विज्ञान है। यह त्योहार हर साल कार्तिक मास के तेरहवे दिन मनाया जाता है, जिस तिथी को त्रयोदशी तिथि भी कहा जाता है। दिपावली के दिन भगवान् धनवन्तरी की पूजा की जाती है, जो की स्वास्थ्य और कल्याण के देवता माने जाते हैं।

भगवान् धनवन्तरी को हमारे धर्म ग्रंथों में आयुर्वेदा का स्रोत माना गया है। स्वास्थ्य और लंबी आयु के विज्ञान को सर्वप्रथम भगवान धनवन्तरी ने ही समझा और उजागर किया था। लेकिन समय के साथ भाषा में बदलाव हुए, नए नए भाषाओं का जन्म हुआ और धनवन्तरी से धनतेरस बना, और शब्द के साथ अर्थ भी बदल गया। जहाँ स्वास्थ्य और कल्याण के लिए पूजा किया जाता था, एवं धन शारीरिक मेहनत से अर्जित किया जाता था, वहाँ अब धन के लिए भी आराधना शुरू हो गया। 

आज हर इंसान को दिवाली धन प्राप्ति के लिए मनाया जाने वालों त्योहार लगता है। लेकिन दिपावली धन-दौलत का नहीं बल्की सेहत और कल्याण का त्योहार है।

यह त्योहार स्वास्थ्य की कामना से मनाया जाता है और इसी खास तिथि को इतने सारे दीप जलाकर और खुशियाँ मनाकर क्यों मनाई जाती है। इसके पिछे पूरा विज्ञान है। तो आइए जानते हैं। 

हम धरती के जिस भाग मे रहते हैं, जिसे उतरी गोलार्द्ध  कहा जाता है, वहाँ त्रयोदसी तिथी के बाद कुछ चिजों में पर्याप्त बदलाव आते हैं जिनमें से कुछ का प्रभाव नकारात्मक होता है। मुख्यतः, त्रयोदसी तिथी से लेकर मकर संक्रांति तक का समय हर प्रकार के जीवन के लिए शुशुप्तावस्था का समय होता है। 

इसलिए पूरे शरद मास मे स्वयं के लिए आवश्यक गतिविधियाँ जैसे कब उठना है, कब सोना है, क्या खाना है, पूरे दिन और रात की प्रत्येक गतिविधियों के लिए क्या दिनचर्या होनी चाहिए, यह हमारे धर्मग्रंथो में वर्णित है, जिसका पालन कर हम हाइबरनेशन (शुशुप्तावस्था) काल के दिनों को  बिमारी या अवसाद से ग्रसित हुए बिना बिता सकते हैं।

इसलिए हाइबरनेशन काल का पहला दिन दिपावली मनाकर शुरू होता है। इस दिन हम दिया जलाकर और पटाखे फोड़कर ऊर्जावान माहौल से शीत निष्क्रियता के प्रभाव को कम करते हैं। 

यही कारण है कि त्रयोदसी तिथि से लेकर मकर संक्रांति तक हमारे यहाँ कोई बीज नहीं बोया जाता है, क्योकि बीज भी हाइबरनेशन के शिकार हो जाते हैं और वे या तो अंकुरित नहीं होते या फिर उनके अंकुरित होने कि गति काफी मंद होती है। हाइबरनेशन का यही अर्थ है, जीवन की जीवंतता का कम हो जाना।

और हम चूंकि इंसान है, इन सभी बातो को समझ सकते हैं इसलिए हम कुछ खास तैयारियाँ करते हैं ताकि इन प्रभावों से बच सकें, और पूरी तरह से जिवंत बने रह सके। 

इस पृथ्वी पर जीवन कायम रखने के लिए ऊर्जा का मुख्य स्रोत सुर्य है। जब पृथ्वी और सूर्य के बीच ज्यामिति में कोई परिवर्तन होता है, तो इसका असर सीधा पृथ्वी पर रहने वाले प्राणियों पर पड़ता है। त्रयोदसी तिथि से मकर संक्रांति तक उत्तरी गोलार्द्ध सूर्य से सबसे ज्यादा दूरी पर होता है जिसके कारण ऊर्जा की कमी साफ महसूस की जा सकती है। यही कारण है की शरद ऋतु मे सिर्फ सूर्य ही देर से नहीं निकलता बल्कि हमारी निद्रा भी देर सबेरे तक हावी रहती है। 

इस महीने में जीवन के इसी मंदता को खत्म करने के लिए घी या तेल के दिए जलाए जाते हैं जो हमे वही ऊर्जा प्रदान करते हैं जो सूर्य से मिलती है। साथ ही उत्सव मनाकर तथा पटाखे फोड़कर शारीरीक स्पंदन को कायम रखने की कोशीश की जाती है।

शरद ऋतु मे पूर्ण जीवंतता बनाए रखने के लिए इस तरह की गतिविधियाँ आवश्यक है, क्योंकि सूर्य और पृथ्वी के बीच की ज्यामिति में आने वाले बदलाव तो होते रहेंगे और उनके प्रभाव से हम अछूते भी नहीं रह सकते। 

आज पटाखे जलाने पर जगह जगह रोक लग रही है ताकी प्रदुषण न हो। यह सही भी है, किन्तु पहले के जमाने से पेड़ों की इतनी कमी भी नहीं थी जितनी आज है, और वाहन या फैक्ट्रियाँ नहीं थी इसलिए पटाखों के धूएं का ज्यादा असर नहीं होता था । खैर, हमे दिए जरूर जलाने चाहिए और उत्सव भी मनाने चाहिए ताकी शारीरीक स्पंदता और मानसिक ऊर्जा को सक्रिय रखा जा सके।


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