व्यक्तिगत बदलाव
मैं महात्मा गांधी के शब्दों से अपनी बात रखना चाहूंगा- "आइए वही बदलाव अपने भीतर लाएँ, जिसे हम दुनिया में लाना चाहते हैं।" एक ऐसे दुखी, निराश व पीड़ित लड़के की कहानी है, जिसने ईश्वर से कहा " भगवान! आपने मुझे कहाँ भेज दिया ? यह दुनिया बहुत बुरी है। कृपया! मुझे वापिस बुला लें। मैं यहाँ नहीं रहना चाहता |मैं आपके साथ ही ठीक था।" भगवान ने कहा, "मैं तुम्हें इस दुनिया में 'तुम्हे' बेहतर बनाने के लिए भेजा है। तुम ही अपने दुख व पीड़ा का मूल कारण हो और 'तुम' ही इसमें बदलाव लाओगे लेकिन यह सब व्यक्तिगत रूप से 'तुम' से शुरू होगा।"
हर मानव जन्म किसी निश्चित व्यक्ति के जन्म का संदेश लाता है। जीवन में दोबारा प्रवेश करता है, यदि यह कोई समझता हैं, तो वह सिर्फ भले कर्म ही करता है। दूसरे शब्दों में कहें तो हमें पिछले प्रदर्शन में सुधार का अवसर दिया जाता है। हम अतीत की भूले मिटा तो नहीं सकते लेकिन उन्हें सुधार तो सकते हैं। हमें पूरे संयम के साथ अपने भीतर जागरूकता पैदा करनी होगी। कोई भी मनचाहे तरीके से कर सकते हैं। प्रकृति ने किसी भी प्राणी की बजाए केवल मनुष्य को ही ऐसे चुनाव की सुविधा दी है।
विस्तार में जाते हुए कहा जाए तो ये कह सकते हैं, कि जो गर्दन सीधी करके संतुलित रूप से बैठ सकती है, वह ही पीठ के बल सीधा लेटकर सो सकती है। वही एक मात्र प्राणी है, जो अपनी श्वास नियमित सकता है। वे इसे रोक सकता है, संकुचित कर सकता है। धीमा कर सकता है, नीचे ले जा सकता है, और इसका निरीक्षण कर सकता है। जिस तरह गौतम बुद्ध ने अभ्यास किया व सिखाया।
मनुष्य जाति प्रकृति के अनेको नियमों से भी बंधी है। वह है "जो बोवोगे, वही काटोगे" यही कारण व प्रभाव का नियम है। यदि हम इंद्रियों का सदुपयोग करे तो प्रकृृति उनकी क्षमता बढ़ा देती है, यदि ऐसा न किया जाए तो इंद्रियों की क्षमता घटने लगती है। जब सही मायनों में कोई दूसरे व्यक्ति तक पहुंचना चाहे तो पहले उसे सामने वाले की जरूरतें समझनी चाहिए।
हमारे देश में आज और हमेशा से कई क्षेत्रों में इसी सहयोग, और बदलाव की आवश्यकता रही है। जैसे जन संख्या स्थिरता, एकता, जनता का सहयोग, जानकारी का अधिकार ,स्वच्छ व धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक नेतृत्व, प्रतिक्रियात्मक सरकार, कानून को मानने वाले जिम्मेवार नागरिक व सबसे अधिक मूल्यों पर आधारित युवा। यह सब प्रदान करना किसी एक की जिम्मेवारी नहीं है। हम सब अकेले या सामूहिक रूप से इन चुनौतियों को बढ़ा रहे हैं।
इन समस्याओं का समाधान हमारे अपने ही हाथों में है। हम अपने-आप से पूछने से ही इसकी शुरुआत कर सकते हैं।