आदियोगी। Adiyogi shiva the source of yoga in hindi
आदियोगी Adiyogi shiva
आदियोगी adiyogi shiva |
जो कोई इस आयाम का हिस्सा हो जाता है उसे हम शिव कहते हैं। आदियोगी ने सर्वप्रथ ब्रह्मांड के सभी आयामों से योग स्थापित किया था। इसलिए हम उन्हें शिव कहते हैं।
1500 साल से भी पहले की बात है, हिमालय के ऊपरी इलाकों मे एक योगी प्रकट हुए। कोई नहीं जानता कि वे कहाँ से आएँ, उनके पूर्वजों के बारे मे भी लोग अनजान थे। लेकिन वे बड़े अद्भुत थे। इसलिए लोग उनके आस-पास जमा होने लगे। लोगो को किसी चमत्कार की उम्मीद थी, पर उन्होंने कुछ भी नहीं किया। वो बस यूँ ही बैठे रहें, बिल्कुल स्थिर। यह देखकर लोग बड़े निराश हुए और वहाँ से जाने लगे । शाम होने तक लगभग सारे लोग जा चुके थे। बस सात लोग ही वहाँ रुके रहें। ये सात लोग समझ गए थे कि बस यूँ ही बैठे रहना भी अपने आप मे एक चमत्कार है क्योंकि ऐसा तब ही संभव है जब कोई इन्सान अपनी भौतिक प्रकृति से परे चला जाए।
उन सात लोगों ने उनसे प्रार्थना की कि आपके पास जरूर कोई ऐसा ज्ञान और अनुभव है जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते, कृप्या यह हमें भी सिखाएँ। उस योगी ने शुरुआत मे उन्हें साधनाएँ सिखाई और कहा, "तुमलोग कछ पहले खुद को तैयार करो।"
वो लोग तैयारी करने लगे। देखते-देखते महीनो बीत गए। महीने सालों मे बदल गएँ, और साल दशकों में। इस तरह 84 साल बीत गए । एक दिन योगी ने देखा ये लोग साधना से एकदम दमक रहे थें, और ज्ञान पाने के उचित पात्र बन गए थे। मानवता को पहली बार यह याद दिलाया गया कि प्रकृति के नियम आपको हमेशा के लिए बाँध कर नहीं रख सकते। अगर आप कोशिश करते हैं तो आप इन नियमों के परे जा सकते हैं। उन्होंने परे जाने के तरिके भी बताए। उन्होंने कभी अपना परिचय नहीं दिया था, कोई उनका नाम भी नहीं जानता था, तो उन सातों ने उन्हें आदियोगी कहकर पुकारा। आदियोगी, अर्थात पहले योगी। इन्हें ही लोग आदियोगी शिव के रूप में जानते हैं।
इसके बाद आदियोगी ने उन सातों को सत्य का ज्ञान तथा आत्मज्ञान पाने के 112 तरीकों को विस्तार से बताया, जिसमे सैकडों साल बीत गयें। ज्ञान पाकर वे सातों दीप्तिमान हो गयें तथा आदियोगी के चरण स्पर्श किए। ये सातो ही सप्तऋषि कहलाएँ।
फिर आदियोगी ने इन सात लोगों को सात अलग अलग दिशाओं में भेजा। एक उनके साथ रुक गए तथा एक अगस्त्य मुनि भारत के दक्षिणी हिस्से में गए एवं अन्य क्रमशः दक्षिण अमेरिका, दक्षिण पूर्वी एशिया, हिमालय पर्वत के भारतीय हिस्से, मध्य एशिया तथा उत्तरी अफ्रीका को गयें।
इस प्रकार दुनिया मे आदियोगी के ज्ञान प्रसार हुआ तथा लोगों ने भक्ति भाव से उन्हें स्वीकारा।