J Krishnamurti ki jivani. जे कृष्णमूर्ति के विचार
जे कृष्णामूर्ति
उनके सोचने समझने और तथ्यों को ग्रहण करने की क्षमता अद्भुत थी। कुछ लोगों ने तो उनकी तुलना महात्मा बुद्ध से भी कर दी है।
तो आज हम जिद्दू कृष्णमूर्ति के जीवन पर एक नजर डालेंगे और उनके विचारों से खुद को लाभान्वित करने की कोशिश करेंगे।
● जे कृष्णामूर्ति जी की जीवनी
जे कृष्णमूर्ति का जन्म 11 मई 1895 को आंध्र प्रदेश के चिंतुर जिला के मदन पल्ली गांव में हुआ था। उनके माता पिता तेलुगु के ब्राह्मण थे। उनकी माता का नाम संजीवम्मा तथा पिता का नाम जिद्दू नारायनीय था। उनके पिता अंग्रेजी हुकूमत में एक सरकारी कर्मचारी थें।
जिद्दू कृष्णमूर्ति जी की आयु जब केवल दस वर्ष था तब ही उनकी माताजी का देहांत ही गया। उसके बाद एनी बेसेंट के आग्रह पर कृष्णमूर्ति के पिताजी थियोसोफिकल समाज का हिस्सा बन गए और वही रहने लगें। थियोसोफिकल समाज का अंग बनने के बाद उनका परवरिश अध्यात्म से ओत-प्रोत भरे वातावरण में होने लगा।
बचपन से ही जिद्दू कृष्णामूर्ति विलक्षण प्रतिभा वाले थे। उनकी क्षमताएं देखकर थिओसोफीकल समाज के प्रमुख दार्शनिक जैसे एनी बेसेंट, मैडम बलावत्स्की आदि ने यह भविष्यवाणी कर दी कि यह बालक एक दिन महान विचारक और विश्व का मार्गदर्शक बनेगा।
इसके बाद जिद्दू कृष्णामूर्ति उस सपने को साकार करने की राह पर निकल पड़े, जिसका सपना एनी बेसेंट और मैडम ब्लावट्स्की ने देखा था, विश्व गुरु का सपना।
उसके बाद उनकी अच्छी आध्यात्मिक शिक्षा के लिए सभी आवश्यक संसाधन उपलब्ध करवाए गए। कृष्णामूर्ति ने विभिन्न प्रकार के चमत्कारिक कारनामें भी किये हैं, जैसे टेलीपैथी से किसी अन्य इंसान से बात करना इत्यादि।
जिद्दू कृष्णामूर्ति जब 27 साल के हुए, तब थियोसोफिकल समाज के प्रमुख लोगों ने उन्हें विश्व गुरु घोषित करने निर्णय कर लिया। उसके अगले साल ही जिद्दू कृष्णामूर्ति को विश्व गुरु घोषित कर किसी मंच पर आमंत्रित किया गया। लेकिन उन्होंने मंच पर आकर यह कहा कि, वह कोई विश्व गुरु नही है। यह सुनकर सभी सन्न रह गए और कृष्णामूर्ति थियोसोफिकल समाज छोड़कर चले गए।
उसके बाद कृष्णामूर्ति जी ने अपनी पूरी जिंदगी लोगो को अध्यात्म के प्रति जागरूक और प्रेरित करने में बिताया। उनके द्वारा दी गयी लगभग सभी व्याख्यानों को आज भी यूट्यूब पर देखा और सुना जा सकता है।
● जे कृष्णामूर्ति के विचार
जे कृष्णामूर्ति ने अध्यात्म को पूरी अलग तरीके से दुनिया के सामने रखा। उन्होंने हर धर्म, सभी पुस्तक, ध्यान की विधियां, भगवान इत्यादि मान्यताओ और विश्वासों को पूरी तरह से नकार दिया। उनके अनुसार, आध्यात्मिक होने का अर्थ बस दिव्यता के पथ पर होना है।
जे कृष्णामूर्ति ने किसी भी धर्म की शिक्षाओं को मानने से इनकार कर दिया। उनका कहना था कि, यदि ये सारे धर्म मानव के मानसिक दुखो को दूर करने के लिए बनाए गए है तो अब तक समस्त मानव जाति को दुख मुक्त होना चाहिए था।
क्योंकि हम मानव प्रकृति के द्वारा की गए जीव शरीर के विकास का नतीजा हैं। और यह धर्म का फंदा, या पूजा पाठ का लगभग 5 हजार साल से चला आ रहा है। तो इन 5 हजार साल में जितनी पीढ़ी आयी है उनका कम से कम इतना तो प्राकृतिक विकास हो जाना चाहिए कि मानसिक रूप से वो ज्यादा संतुलित रहे।
उनका कहना था कि यह दुनिया किसी के भी कितना भी सिखाने से नही सीखेगी, क्योंकि सिखाये हुए शब्द बस एक सूचना होंगे। इस दुनिया को अगर वास्तव में द्वंद्व रहित बनाना है, तो मानव जाति में मानसिक क्रांति की आवश्यकता है।
इस प्रकार जे कृष्णामूर्ति ने मानवीय चेतना के एक नए आयाम पर प्रकाश डाला। भले ही जे कृष्णामूर्ति आज इस दुनिया मे नही है लेकिन उनके द्वारा दी हुई शिक्षाओं से दुनिया आज भी मार्गदर्शन पा रही है।