Vyavahar व्यवहार क्या है।। व्यवहार निर्माण की प्रक्रिया
व्यवहार क्या है
दोस्तों, जिस प्रकार अंगूठे का निशान किसी इंसान का अद्वितीय पहचान होता है, वैसे ही इंसान का व्यवहार उसके व्यक्तित्व का पहचान होता है।
इंसान का व्यवहार ही समाज मे उसे इज्जत दिलाता है और व्यवहार ही उसके बदनामी का भी कारण बनता है।
लेकिन फिर भी आज हमारे समाज मे बच्चों के व्यवहार निर्माण में जो लापरवाही बरती जा रही है उसके प्रति अब सचेत होने का वक्त आ गया है।
उच्च तकनीकी के इस युग ने लोगो की सुविधाएं तो बढ़ाई है, लेकिन सामाजिक और वैयक्तिक स्तर पर इसके कई नुकसान भी उभर कर आये हैं। इसका सबसे ज्यादा दुष्प्रभाव बच्चों पर पड़ा है। सोशल मीडिया के जरिए बच्चे उन जानकारियों से भी रूबरू हो रहे हैं, जिसे जानने की उनकी अभी उम्र भी नही है।
बचपन से ही फिल्में और भड़काऊ वीडियो देखने के कारण वे उन काल्पनिक चीजों और असल जिंदगी के बीच के फासले को भूलते जा रहे हैं। जिसके परिणामस्वरूप पहले के बच्चों और आज के बच्चों के व्यवहार में काफी अंतर आया है।
व्यवहार निर्माण की प्रक्रिया
व्यवहार फूलों की माला की तरह होता है, जिसे बचपन से ही माता-पिता तथा आस पास के समाज द्वारा बच्चों में एक-एक कर पिरोया जाता है, और अंततः वही उनका व्यक्तित्व निर्धारित करता है।
किसी व्यक्ति का व्यवहार कैसा होगा यह पूरी तरह से इस बात पर निर्भर करता है कि उसका विचार प्रक्रिया किस प्रकार है। अर्थात, एक प्रकार की ही स्तिथि के लिए कोई एक व्यक्ति बड़ा झमेला खड़ा कर सकता है तो दूसरा उस स्थिति को शालीनता से संभाल सकता है।
और किसी व्यक्ति का विचार प्रक्रिया कैसा होगा यह बचपन से सिखाये गए बातों से ही तय होती है। अतः एक स्वस्थ समाज की रचना के लिए यह जरूरी है हर माता-पिता अपने बच्चों को उचित बातें ही सिखाएं।
अब प्रश्न आता है कि क्या परिपक्व इंसान का व्यवहार अगर अच्छा नही है तो क्या उसे बदला जा सकता है? जवाब है, बिल्कुल बदला जा सकता है। महात्मा बुद्ध ने अपनी शालीनता से अंगुलिमाल जैसे डाकू का भी हृदय परिवर्तन कर दिया था। यह घटना इस बात का गवाह है की बुराई की जड़ें कितनी भी गहरी हों, प्रयास से उसमे अच्छाई के फूल खिलाए जा सकते हैं।
दोस्तों, अपने या अपने बच्चों के भीतर अच्छे व्यवहार के निर्माण के लिए निम्न बातों का ध्यान रखना आवश्यक है:-
● संस्कृति का ज्ञान
हमारी संस्कृति प्राचीन काल से ही बच्चों या बड़ों के व्यवहार निर्माण पर विशेष ध्यान देने वाली रही है। लेकिन आज पश्चिम की सभ्यता के चकाचौंध में हमारी सभ्यता नीचे दब गई है। अगर हम अपनी संस्कृति से पूर्णतः रूबरू हो जाएंगे तब हम जानेंगे कि आज जिन गुणों को स्वयं में या अपने बच्चों में होने के सपने देखते हैं, वो गुण हमारे पूर्वजों में स्वतः ही थे।
जिस संस्कृति में राम-लक्ष्मण जैसे भाई हों, सीता जैसी नारी हो, गीता का ज्ञान हो, उस संस्कृति को मानने वालों में अच्छे व्यवहार स्वतः ही होने चाहिए। अतः यह हमारी परम जिम्मेदारी है कि हम अपनी आने वाली पीढ़ी को इस संस्कृति के असल रूप से परिचित कराएं।
● इंसानियत के प्रति संवेदनशीलता
अगर हम बस इंसानी गुणों के प्रति संवेदनशील हो जाएं, तो व्यवहार निर्माण के लिए अलग से प्रयास नही करना पड़ेगा। इंसानियत एक ऐसा धर्म है जो बाकी सभी मजहबों से परे है, और यह दुनिया के प्रत्येक इंसान के बीच सौहार्द्रपूर्ण रिश्ता की नींव रख सकता है।
● स्वस्थ समाज के रचना के प्रति जिम्मेदारी
अगर आप यह बात समझ लें कि समाज आप जैसे लोगों से ही मिलकर बना है और समाज को स्वस्थ रखने की जिम्मेदारी भी आपकी ही है, तब आप हर काम व्यवहार कुशलता से करेंगे। क्योंकि आपका एक भी गलत व्यवहार पूरे समाज के ढांचे को प्रभावित कर सकता है।