2023 Chhath puja। छठ पूजा कब है।। छठ पूजा क्यों मनाया जाता है।


दोस्तों, यहाँ आप जानेंगे छठ पूजा कब है, और छठ पूजा हर साल किस तिथि को तिथि को मनाया जाता है। साथ आप जानेंगे कि छठ पूजा क्यों मनाया जाता है, छठ पूजा का क्या महत्व है और छठ पूजा मनाने के पीछे की कहानी क्या है।


छठ पूजा कब है

आस्था का महापर्व छठ पूजा हिंदी कैलेंडर के अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष मे मनाया जाता है। यह चार दिनों तक मनाया जाने वाला महापर्व है। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष के चतुर्थ तिथि को नहाय-खाय मनाकर इस पर्व का आरंभ किया जाता है, तथा सप्तमी तिथि को सूर्य को दूसरा अर्घ्य देने के साथ ही इसका समापन होता है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार, छठ पूजा हर साल नवंबर के महीना मे मनाया जाता है। 

2023  मे छठ पूजा का पहला अर्घ्य दिनांक 19 नवंबर 2023 को है। 

छठ पूजा के चार दिन के सभी विधि-विधानों का तारीख निम्न है:- 
● 17 नवंबर 2023  को नहाए-खाए, 
● 18 नवंबर 2023  को खरना, 
● 19 नवंबर 2023 को पहला अर्घ्य एवं 
● 20 नवंबर 2023 को दुसरा अर्घ्य एवं पारन है।

छठ पूजा क्यों मनाया जाता है

छठ पूजा हिंदू धर्म का एक बड़ा महत्वपूर्ण पर्व है। इस पर्व को महापर्व की संज्ञा दी गई है। छठ पूजा मुख्य रूप से संतान रत्न प्रदान करने वाला पर्व माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि जिस स्त्री को संतान नही होता, उसे यह पर्व करने से संतान पाने की उसकी मुराद पूरी हो जाती है। 

छठ पूजा में छठी मैया के साथ सूर्य भगवान की भी उपासना की जाती है। वैदिक मान्यताओं के अनुसार छठी मैया और भगवान सूर्य में भाई-बहन का रिश्ता है। माता छठी को प्रसन्न करने के लिए और भगवान सूर्य को धन्यवाद करने के लिए उनकी पहली किरण और आखिरी किरण को अर्घ्यदान दिया जाता है। 

यह पर्व किसी कठोर तपस्या से कम नही है। इस पर्व में व्रतियां 36 घंटे तक बिना अन्न-जल ग्रहण किये छठी मैया की उपासना करती हैं। ऐसा माना जाता है कि छठी मैया बहुत जल्द रुष्ट हो जाती हैं। इस कारण इस पर्व के सभी विधियों को बहुत सावधानी से पूरा किया जाता है। छठ पूजा में इस्तेमाल होने वाली प्रत्येक सामग्री की शुद्धता का बहुत ध्यान रखा जाता है, एवं जितना हो सके उतना उन सामग्रियों को घर पर ही तैयार किया जाता है।
इस पर्व का शुरुआत कार्तिक मास के शुक्लपक्ष के चतुर्थी को नहाए-खाए मनाकर होता है। उसके अगले दिन पंचमी को खरना मनाया जाता है। षष्ठी को डूबते सूर्य को अर्घ्य देकर उपासना की जाती है एवं सप्तमी को उगते सूर्य को अर्घ्य देकर तथा छठी मैया की पूजा कर इस पर्व का समापन होता है।

इसके अलावा छठी मैया से अपनी मुराद पूरी करने के लिए लोग अनेक तरह की मन्नते भी माँगते हैं। जिसमे से एक है पानी मे खड़े रहकर आराधना करना। लोग मन्नत मांगते है कि अगर उनकी मुराद हो जायेगी तो वो पानी मे खड़े रहकर छठी मैया और भगवान सूर्य की आराधना करेंगे। मन्नत पूरी होने पर संध्या अर्घ्य के बाद सूर्य के अस्त होने तक छठी मैया और भगवान सूर्य का ध्यान करते हुए पानी मे खड़े रहते हैं। फिर अगले सुबह 4 बजे से उषा अर्घ्य होने तक पानी मे खड़े रहते हैं।

इस प्रकार अनेकों तरह के विधि-विधानों और कठोर नियमो का का पालन करते हुए इस पर्व को मनाया जाता है।

इस महापर्व को मनाने के पीछे अनेक कथाएं प्रचलित है।

पुराण के अनुसार छठ पूजा 

पुराण में भी छठ पूजा को मनाने का उल्लेख मिलता है। उसके अनुसार, राजा प्रियमवद और रानी मालिनी को पुत्र प्राप्ति नही हो रही था। तब उन्होंने कश्यप ऋषि के बताए विधियों के अनुसार छठी मैया का व्रत किया था एवं पुत्र सुख प्राप्त किया था। तब से ही लोग पुत्र प्राप्ति के लिए उन्ही नियमों का पालन करते हुए छठ का व्रत मनाते हैं।

महाभारत के अनुसार छठ पूजा 

इस पर्व को मनाने का कारण महाभारत में भी मिलता है। उसके अनुसार, महाभारत काल के समय, माता कुंती ने सूर्य की उपासना करते हुए उन्हें अर्घ्य अर्पण किया था। इससे प्रसन्न होकर सूर्य भगवान ने उन्हें पुत्र रत्न प्राप्ति का वर दिया था। इसी वर को फलीभूत होने के लिए माता कुन्ती ने जब कुँवारी थी तब ही एक पुत्र को जन्म दिया था, जिसे लोक लाज के कारण उन्होंने नदी में प्रवाहित कर दिया था। बाद में यही बालक महाभारत युद्ध का एक महान योद्धा बना और सूर्य पुत्र कर्ण के नाम से विख्यात हुआ। 

इसके अलावा छठ पूजा सुख, शांति और समृद्धि पाने के लिए भी किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि जब पांडव जुए में अपना सब कुछ हार गए थे, तब द्रौपदी ने छठ का व्रत किया था और इसके प्रभाव से उन्होंने दुबारा अपना राज्य हासिल किया।

छठ पूजा का व्याख्यान रामायण में भी मिलता है। ऐसा माना जाता है कि जब भगवान राम का राज्याभिषेक हुआ था तब राम राज्य का शुरुआत करने से पहले भगवान राम और माता सीता ने राज्य की तरक्की के लिए छठ का व्रत किया था।

छठ पूजा के पीछे की कहानी जो भी रही हो, लेकिन आज भक्तजन जिस आस्था और श्रद्धा से इस कठिन पर्व को करते हैं उससे इसके महत्व का अंदाजा लगाया जा सकता है। 









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