मकर संक्रांति क्यों मनाया जाता है
दोस्तों, हमारी संस्कृति में अनेकों पर्व-त्योहार मनाए जाते हैं, जिनका महत्व धार्मिक दृष्टिकोण से तो है ही, साथ ही वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी उनका काफी महत्व है। ऐसा ही एक त्योहार है मकर संक्रांति। आज हम जानेंगे मकर संक्रांति क्यों मनाया जाता है तथा इसको मनाने के पीछे का धार्मिक और वैज्ञानिक आधार क्या है।
● मकर संक्रांति क्यों मनाया जाता है
मकर संक्रांति क्यों मनाया जाता है |
● एक परिचय
मकर संक्रांति भारतीय संस्कृति का एक बहुत महत्वपूर्ण त्योहार है। यह त्योहार पूरे भारतवर्ष में अलग अलग नामों से मनाया जाता है। बिहार, उत्तर प्रदेश तथा राजस्थान में इसे सकरात, खिचड़ी या संक्रांति के नाम से जाना जाता है। वही गुुजरात में इसे उत्तरायण तो केरल में पोंंगल के नाम से मनाया जाता है।
चूँकि मकर संक्रांति अंतरिक्ष मेे सूर्य के दक्षिणायन से उत्तरायण होने की तिथि को मनाया जाता है, इसलिए यह त्योहार कैलेंडर में हर साल लगभग एक ही तारीख को आता है, 14 या 15 जनवरी को। इस तिथि को सूर्य धनु राशि से निकलकर मकर राशि मे प्रवेश करता है इसीलिए इसे मकर संक्रांति कहा जाता है।
●धार्मिक महत्व
मकर संक्रांति का दिन धार्मिक दृष्टिकोण से काफी महत्वपूर्ण है। मुख्य रूप से योगियों और साधु-संतों या जो आध्यात्मिक प्रक्रिया को आत्मसात करना चाहते हैं, उनके लिए यह तिथि बहुत अहम है।
हिन्दू मान्यताओं के अनुसार मकर संक्रांति के ही दिन भगवान विष्णु ने असूरों का संहार कर उन्हें मंदार पर्वत के नीचे दबा दिए था और युद्ध समाप्ति की घोषणा की थी। इस प्रकार यह दिन एक नई ऊर्जा के साथ नया शुरुआत करने का दिन होता है। साधु-संत इसी दिन अपने धार्मिक अनुष्ठानों और साधनाओं को एक नई दिशा देते हैं।
इस दिन गंगा स्नान के साथ शरीर शुद्धि के साथ एक साल के नए चक्र का शुरुआत करना चाहिए। उत्तरायण को देवताओं का समय अर्थात सकारात्मकता का प्रतीक माना जाता है। अतः इस दिन किया गया दान सौ गुना बढ़कर वापस आता है।
शास्त्रों के अनुसार, संक्रांति के दिन हर साल भगवान भास्कर अपने पुत्र तथा मकर राशि के स्वामी शनिदेव से स्वयं मिलने जाते हैं। इस कारण यह दिन धार्मिक क्रियाओं के लिए महत्वपूर्ण हो जाता है तथा इसको अनेको विधि-विधानों से मनाया जाता है।
चूंकि यह दिन भगवान सूर्य के साथ-साथ शनिदेव का भी होता है और शनिदेव का शुभ रंग काला है, इसलिए इस दिन गंगा स्नान करके काला तिल और काला कपड़ा दान करने का बड़ा महत्व है।
●वैज्ञानिक महत्व
हम सब यह जानते हैं तथा विज्ञान में इसका सबूत भी मिल चुका है, कि अंतरिक्ष मे सूर्य की स्थिति पृथ्वी पर के जीवन को प्रभावित करता है। शरद ऋतु में सूर्य की एक लंबी अनुपस्थिति के कारण वातावरण में तथा प्राणियों में ऊर्जा का प्रवाह काफी कम हो जाता है।
सूर्य के उत्तरायण में प्रवेश करने के दिन को बसंत का शुरुआत माना जाता है, तथा इसके साथ ही ठंडी कम होने लगता है। अतः यह पृथ्वी के सभी जीवों के लिए काफी ऊर्जादायक दिन होता है तथा इसके बाद से सूर्योदय नियमित होने लगता है।
यह त्योहार अनेक जगहों पर फसलों को समर्पित कर भी मनाया जाता है, जैसे केरल और पंजाब में, क्योंकि यह समय फसलों के पकने और कटाई का समय होता है। इस दिन नए अनाज से भोजन तैयार किया जाता है तथा उसका ही भोग लगाकर प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है।
तो दोस्तों, इस प्रकार यह दिन धार्मिक और वैज्ञानिक दोनों ही दृष्टिकोण से काफी अहम बन जाता है।