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Swarg kise kahte hain.. swarg kitne hote hain.

स्वर्ग किसे कहते हैं

Swarg kise kahte hain.. swarg kitne hote hain.
Swarg kise kahte hain

स्वर्ग, एक ऐसा स्थान जहाँ देवताओं का वास हो, जहाँ अमृत की वर्षा होती हो, जहाँ चारो ओर आनंदमयता हो, कोई पीड़ा न हो तथा हर तरह की सुख-सुविधा के साधन मौजूद हों। हमारे धर्मग्रंथों के अनुसार, जो इंसान अपना जीवन धार्मिक रूप से बिताता है, कोई पाप नही करता, भलाई का कार्य करता है उस इंसान को देवता तुल्य माना जाता है तथा मरने के बाद स्वर्ग में स्थान दिया जाता है। 

साथ ही, विद्वानजनों ने स्वर्ग को परिभाषित करते हुए यह भी कहा है कि स्वर्ग और नरक दोनों ही इसी मृत्युलोक में मौजूद हैं, एक खुशहाल और निर्मल विचारों वाले परिवार का घर किसी स्वर्ग से कम नही है। वहीं छल-कपट की भावना से भरे लोगो का घर किसी नरक की तरह ही है। 
सही भी है, क्योंकि देवताओं के रहने के स्थान को ही देवलोक कहा जाता है। अतः देवत्व प्रवृत्ति वाले लोग जिस स्थान पर रहते हों वह स्थान स्वर्ग से कम नही होगा। भले ही वहाँ की बाहरी शोभा वैसी न हो, जैसी हम स्वर्ग में होने की कल्पना करते हैं लेकिन वहाँ के हवा के गुण तथा वातावरण की सकारात्मक ऊर्जा स्वर्ग के समान ही होगी।

पुराने जमाने में ऋषि-मुनियों की कुटिया में जाने पर इंसान के मन को वह शांति मिलती थी जो राजमहल में भी नही मिलती थी। यह ऋषि-मुनियों के सत्कर्म तथा धार्मिक प्रवृत्ति का ही कमाल था। आज भी अनेकों ऐसे मंदिर मौजूद हैं जहाँ एक बार जाने पर मन की सारी व्याकुलता समाप्त हो जाती हैं, और इंसान शांतचित हो जाता है। 

आज स्वर्ग शब्द सुनते ही सबके मन मे बस अप्सराएं, उत्तम भोजन, भोग-विलास आदि बाते आती हैं। लेकिन हमारे वेद और पुराणों में स्वर्ग का जो अर्थ बताया गया है वह निश्चय ही भोग विलासिता नही है। क्योंकि भोग विलास तो मन के बंधन हैं, और जहाँ बंधन होंगे वहाँ पूर्णतः खुशहाली कभी नही आ सकती।

तो यदि हम मान्यताओं और विद्वानजनों के तर्कों पर ध्यान दें, तो हम यह कह सकते हैं कि स्वर्ग दो तरह के हो सकते हैं।
एक तो वह जो मृत्युलोक में ही इंसान के सत्कर्मों के प्रभाव से रचा गया हो, दूसरा वह जहाँ देवतागण रहते हैं तथा जहाँ का राजा इंद्र को माना जाता है। मृत्युलोक का स्वर्ग पृथ्वी पर का कोई भौगोलिक स्थान नही है, बल्कि यह तो इंसान के भीतर का ही गुण है। इसलिए ना तो इसे पैसे से खरीदा जा सकता है और ना ही किसी से छीना जा सकता है।
वही, अगर इंद्र के स्वर्ग की बात करे, तो धर्मग्रंथों मे स्वर्ग की व्याख्या के आधार पर यह सबूत मिलता है कि स्वर्ग, ब्रह्मांड मे कोई भौगोलिक स्थान है, अर्थात ब्रह्मांड के नक्शे मे इसका भौतिक अस्तित्व है। इस स्वर्ग मे कोई भी व्यक्ति शरीर के साथ प्रवेश नही कर सकता। तो, यहाँ जाने के लिए आपको सबसे पहले मरना होगा। मरने के बाद, बिना शरीर के स्वर्ग के भोग विलास कैसे भोगे जा सकते हैं, आत्मा के लिए भोजन, अप्सराएँ या इसी प्रकार की किसी अन्य तुच्छ भोग का महत्व ही क्या है?
तो, लोग ऐसे सुख-सुविधा को पाने के लिए जीवन भर तैयारी करते हैं जिसका उनके लिए कोई महत्व ही नही रह जाएगा। इसलिए उचित यही होगा कि मरने के बाद के स्वर्ग की कल्पना छोड़कर, पृथ्वी पर ही जहाँ हम रहते हैं वहीं स्वर्ग जैसा वातावरण बनाने के लिए काम करें।
धन्यवाद!

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