जीवन में उन्नति के उपाय
जीवन मे उन्नति का एक ही उपाए है: सतत् प्रगतिशील होना। निरंतर प्रगति ही आपको उन्नति के शिखर तक ले जा सकती है। आज आप जो भी कर रहे हैं, उससे आप उन्नति के कितने करीब जा रहे हैं यह आपके काम की प्रगति से ही पता चलता है। अतः, जीवन मे उन्नति पाने के लिए प्रगतिशील होना अत्यंत आवश्यक है।
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जीवन में उन्नति के उपाय |
प्रगतिशील मनुष्य में दो गुण होते हैं- निर्भयता और मौलिकता। निर्भयता उसे तमाम अवरोधों से लड़ने की शक्ति देता है, और मौलिकता नवसृजन के लिए प्रेरित करता है। निर्भयता आत्मविश्वास से जुड़ा होता है, और आत्मविश्वास अंधेरे में उजाले की लौ जलाये रखता है। ऐसे लोग सदैव ही अपने कौशल और साहस से उन्नति प्राप्त करते हैं।
शक्ति और इच्छा से अवसरों को सर्वोत्तम सफलता तक पहुंचाना, उनकी मौलिकता और निर्भयता के कारण ही है। परंतु एक प्रगतिशील मनुष्य केवल अपनी प्रगति से संतुष्ट नही होता, वह समाज की प्रगति के लिए भी प्रयत्नशील रहता है।
और ऐसा कहा भी गया है, सतत उन्नति एक लक्ष्य है, जिसकी प्राप्ति के लिए सभी मानव समाजों को प्रयत्नशील रहना चाहिए। ऐसा कहा जाता है कि सतत विकास एक आदर्श है, जिसे आज के किसी भी समाज द्वारा इससे मिलते-जुलते किसी रूप मे नहीं प्राप्त किया जा सका है। फिर जैसा की न्याय, समानता और स्वतंत्रता के साथ है, सतत विकास को एक आदर्श के रूप में प्रोत्साहित करना चाहिए। एक लक्ष्य जिसकी प्राप्ति के लिए सभी मानव समाजों को प्रयत्यशील रहना चाहिए। मेरे अनुसार इसके लिए मानसिक साधना की आवश्यकता होगी। वैसे भी, मानसिक साधना के तीनो सोपानो - स्वाध्याय, सत्संग और सेवा में सबसे ज्यादा महत्व सेवा का है।
मौलिकता वह आवश्यक शक्ति है जो आपके अंदर ही छिपी है, आप बाहरी सहायता से सफल होंगे, यह भ्रम जितनी जल्दी दूर हो जाये उतना ही अच्छा है। बाहरी सफलता में कोरी प्रशंसा छिपी रहती है, जो मनुष्य को आत्मकेन्द्रित बना देती है। एक बार 'मैं', 'मुझे' और 'मेरा' की लत लग जाये, तो मनुष्य पतनगामी हो जाता है। जब अन्य गुण साथ छोड़ जाते हैं, तब अध्यवसाय ही मनुष्य को विजयी बनाता है।
मौलिकता निरंतर अभ्यास से बनी रहती है। नेपोलियन और रावण में यही अंतर था। रावण सबल था, पर संकल्प शक्ति से कमजोर था। नेपोलियन निर्भय होने के साथ-साथ संकल्प का भी पक्का था। इसलिए तो हाथ में स्वयं से रेखा बना कर विश्व विजय के लिए निकल पड़ा। जब तक ये दोनो गुण मौजूद हैं, उन्नति के साथ कल्याण भी होता रहेगा।
एक बात याद रखनी चाहिए कि प्रत्येक बाधा शाप नहीं होती। जीवन की प्रारंभिक बाधाएं बहुधा आशीर्वाद होती है, क्योकि ये हमें मुश्किल परिस्थितियों से लड़ना सिखाती है। जीवन वह नहीं है जो हमारे साथ घटित होता है बल्कि जीवन वह होता है जो घटता है, हर नये पल को गले लगा कर उसे बेहतर बनाने की कोशिश करता है। इससे ना हम सिर्फ जिन्दा रहते हैं, बल्कि लगातार उन्नति की ओर अग्रसर भी होते हैं। जीती हुई कठिनाइयां न केवल हमे शिक्षा देती है, बल्कि हमें साहसी भी बनाती है। इस संदर्भ में सुकरात की जीवनी सटीक है।
सुकरात की पत्नी क्रोधी स्वभाव की थी, और अक्सर उन्हें अपशब्द बोलती रहती थीं। एक बार उनके एक शिष्य ने कहा कि उनकी पत्नी उनके योग्य नहीं। सुकरात बोले- "नहीं, यह गलत है, वह ठोकर लगा-लगा कर देखती रहती है कि में कच्चा हूं या पक्का, यानी मेरी सहनशक्ति कितनी है? अगर मैं भी उसकी तरह बन जाऊं, तो फिर महात्मा कैसे कहलाऊं?"
प्रगतिवादी मनुष्य अतीत से ही वर्तमान को गढ़ने का बीज ग्रहण करता है, जिसे अनुकूल स्थिति प्रदान कर फलने फूलने लायक बनाता है। स्व-उत्थान से पर-कल्याण का मार्ग सहजता से प्राप्त होता है, बशर्ते कि मन अभिमान से परे हो। जब म हमारी चेतना सहज जीवन के सहज आनंद प्रकृति और खुशी पर होती है, तब प्रतिकूल संभावनाएं भी अनुकूल होने लगती है। जब हमारा फोकस अच्छे तन और मन की ओर होगा, तो जाहिर सी बात है, हम उन्हें नुकसान करने वाली चीजों से दूर ही रखेंगे।
Jab me koi naya kam pramb karn chahata hun tab anek chintay puri hai man me chochhta hun ki munafe ke bare me ,ouchit jagah ke bare me