गुस्सा शांत करने के मंत्र।। gussa kyu aata hai
अक्सर बाहरी परिस्थितियों को देख- सुन कर हमारे मन में उन परिस्थितियों के अनुसार ही विभिन्न प्रकार की भावनाएँ उठती हैं। उन्हीं में से एक है गुस्सा, जो काफी लोगों के लिए एक बिमारी की तरह बन गया है, क्योंकि ऐसे लोग ना चाहते हुए भी गुस्सा कर देते हैं, और बाद में पछताना पड़ता है।
तो आज हम इसी विनाशकारी मनःस्थिति, की तह तक जाने की कोशिश करेंगे, और कुछ बुनियादी सवाल, जैसे, 'गुस्सा क्यों आता है ?? 'गुस्से की क्या प्रकृति है?' 'इसे कैसे नियंत्रित कर सकते है?' तथा सबसे आखिर में 'गुस्से को नियंत्रित करने का क्या मंत्र है?' आदि के जवाब जानेंगे।
• गुस्सा क्यों आता है?
अगर इस प्रश्न का उत्तर एक वाक्य में देना हो तो यही होगा की आपको गुस्सा इसलिए आता है, क्योंकी आप गुस्सा करते हैं। लेकिन आज हम इस भावना की उत्पत्ति के जड़ तक जाएंगे, ताकि जड़ से इसे समाप्त कर सकें।
गुस्सा का मुख्य वजह है, प्रतिकार करना। जब भी कुछ ऐसा हो जाता है, जो आपकी उम्मीदों के विपरीत हो तब गुस्सा आता है। इसके अलावा आपका पसंद-नापसंद के जाल में उलझे रहना गुस्सा का मुख्य कारण है। आप अपनी सहुलियत से अपने मन मे यह बात भर लेते हैं कि कौन आदमी अच्छा है, और कौन आदमी बुरा है। इस प्रकार आप जिन्हें अपनी नापसंद से जोड़ लेते हैं, तो उसकी हरकतें आपको गुस्सा दिलाने वाली लगती है। लेकिन क्या ये जीवन की सबसे बड़ी असफलता नहीं है की आपके भीतर क्या होना है ये दूसरा व्यक्ति तय करे ?
अगर आप कोई चीज प्राप्त करने की कोशिश करते हैं और नहीं मिलता, तो यह भी आपके गुस्से का कारण बन जाता है। भगवद गीता के अनुसार गुस्सा वह भावना है, जो किसी बालक के मन में उसकी मनचाही वस्तु न मिलने पर उठती है। क्या बड़े लोगों का गुस्से में आपा खोना भी एक बचकाना हरकत नहीं है?
इस सब में गुस्सा का एक ऐसा भी रूप है जिसे लोग अक्सर नजरअंदाज कर देते हैं। वह है, मोह के कारण उत्पन्न गुस्सा। इसका शिकार अक्सर या तो बच्चे होते हैं, या घर के बड़े-बुजुर्ग होते हैं। जब भी घर का कोई वृद्ध कुछ ऐसा कार्य करता है जो उसके लिए हानिकारक हो, तब उसके जवान बेटे या कुछ बहु उन्हें इस गुस्सा का शिकार बना लेते है। इसे नजरअंदाज इसलिये कर दिया जाता है, क्योंकि इसे प्यार या वृद्ध का ख्याल रखने की भावना से जोड़ दिया जाता है। लेकिन ये गुस्सा तब तक ही नजरअंदाज करने योग्य है जब तक की यह आपके काबू मे है। अगर यह गुस्सा आपके काबू में नहीं रहता, अगर आप इसकी वजह से वृद्ध को आहत कर देते हैं, तब निश्चित ही यह भी एक बिमारी की तरह है। क्योंकि प्यार कभी दुख का कारण नहीं बनता।
• गुस्से पर नियंत्रण
गुस्से के हर रूप का अगर आप ध्यानपूर्वक निरीक्षण करें, तो आप पाएंगे की सब आपके भीतर से ही उत्पन्न हुआ है, लेकिन इसका कारण बाहर की चीजे हैं। तो क्या आपके भावनाओं की ये प्रकृति है, कि वो बाहरी तत्वों से संचालित हो ? बेशक नहीं। आपकी भावनाएं आपकी स्वयं की हैं, इसपे पूर्णरूपेण आपका अधिकार होना चाहिए। लेकिन होता यह है, कि इसका नियंत्रण आप दूसरे लोगों के हाथों मे दिए रहते हैं। आपका मन कोई रिमोट संचालित खिलौना नहीं है कि जिसका मन किया वो आकर खेल लिया। लेकिन कड़वा सत्य यह है की ऐसा ही होता है, और इससे भी खराब बात ये कि इसी को आप सामान्य स्थिति समझ लेते हैं।
अगर आप जागरूक होकर विचार करें और आपको क्रोध एवं आनंद में से कोई एक चुनना हो, तो आप निश्चित ही आनंद का चयन करेंगे। लेकिन अज्ञानता में आप जान बुझकर गुस्सा चुनाव कर लेते हैं। जो चीजे आपके भीतर घटित हो रही हैं, वह बेशक आपके अनुसार होनी चाहिए। आप उसके लिए किसी और को दोष नहीं दें सकते।
मैं आपको एक सुन्दर सी कहानी सुनाता हूँ:
एक संत थे। एक दिन उन्होंने सोचा कि नदी के बीच मे जाकर, प्रकृति की गोद मे ध्यान लगाया जाए। उन्होंने एक नाव लिया और नदी के बीच के मे हिस्से पहुँच गये। वहाँ पहुँचकर वे आँख बंदकर ध्यान में लिन हो गए। आनंदमयता की लहरें उनके भीतर हिलोरे लेने लगी।
लेकिन कुछ ही देर बाद उनके नाव मे एक दूसरे की टक्कर हो गई। लेकिन संत जी ने आँखें नहीं खोली। लेकिन उन्हें फिर दुबारा टक्कर महसूस हुई। अब संत जी को गुस्सा आने लगा। जब तीसरी टक्कर हुई तो वो ये चिल्लाते हुए आँखे खोले की कौन बेवकुफ नाविक है जिसे मेरी नाव नहीं दिख रही। जब उन्होंने पीछे देखा, तो पाया की एक खाली नाव थी, जो बहते हुए आ गई थी, और संत के नाव से टकरा रही थी। यह देख उन संत का गुस्सा तो काफूर हो गया, पर उन्होंने अपने मन मे उत्पन्न हुए गुस्से के कारण पर गौर किया।
वास्तव मे वो जिस नाविक पर वो गुस्सा कर रहे थे, उसका तो कोई अस्तित्व ही नहीं था। इसका सीधा सा अर्थ यही है की यह जो भावना उनमे उत्पन्न हुई, वह बेशक तब भी होती जब कोई नाविक होता। लेकिन नाविक के होने या न होने से उनके गुस्से की उत्पत्ति पर कोई फर्क नहीं पड़ता। इसका सिधा सा अर्थ यह है, की गुस्से की उत्पत्ति का कारण स्वयं उनका मन है, न कि इस भावना का जननी कोई बाहरी व्यक्ति।
गुस्सा मूल रूप से आपके ही दिमाग के द्वारा उत्पन्न किया हुआ जहर है। लेकिन दिमाग तो हर पल ख़ुशी की चाह रखता है, फिर खुद से ही खुद के लिए जहर क्यों उत्पन्न करता है? ऐसे गुस्से को आप कैसे नियंत्रित कर सकते हैं?
अगर आप इस इतना भी चैतन्य रह पाएँ, की आप देख सकें कि गुस्से के पूरे जिम्मेदार आप स्वयं ही हैं, ना की कोई दूसरा व्यक्ति, तो भी आप गुस्सा नही करेंगे।
• गुस्सा शांत करने के मंत्र
जब आप अपनी पहचान किसी खास, सीमित विचारधारा से जोड़ लेते हैं तब आप हर चीज को, या इंसान को उसी विचारधारा के मद्देनजर सही या गलत ठहराते हैं। इसका एक और दुष्परिणाम यह होता है कि आप भीतर से खुद को सीमित तौर पर भरा होने का एहसास पाते हैं। ऐसे में आपको खालीपन का भय बना रहता है।
जब स्वयं का पहचान ही सीमित बन जाता है, तो आपका दिमाग इसकी रक्षा करने की प्रेरणा देता है। जब भी इस पहचान को ठेस पँहुचता है, दिमाग इसकी रक्षा हेतु गुस्सा उत्पन्न करता है।
यही वजह है की हमारी संस्कृति मे जब बच्चे गुरुकुल मे पढ़ने जाते थे, तो सबसे पहले उन्हे "अहम् ब्रमास्मि" मंत्र का पाठ पढ़ाया जाता था, जिसका अर्थ है, स्वयं का पहचान ब्रह्मांड से जोड़ना। अगर पूर्ण ध्यान से इसको उच्चरित किया जाता है, तो गुस्सा शांत करने का यह मंत्र अचुक है। जब स्वयं का पहचान ही असीमित होगा, तो इसमे से कोई कितना भी निकाले, यह कभी खाली नही होगा और कोई कितना भी इसमे भरे, यह सब कुछ स्वयं मे समा लेगा।
अगर आपका पहचान सब कुछ समा लेने जितना विस्तृत होगा, तो आप कभी भी इंसानों को अच्छे- बुरे के तराजू मे नही तौलेंगे, आप कभी भी पसंद-नापसंद जैसी चीज के प्रति कट्टरवादि नही बनेंगे। ऐसा होने पर आप कभी भी गुस्सा के शिकार नही होंगे।
हमेशा के लिए अगर गुस्से से छुटकारा पाना है, तो खुद का पहचान असीमित कीजिये, तथा "अहम् ब्रह्मस्मि" मंत्र का जाप कीजिए। यह हर चीज या घटना सहजता से स्वीकार करने की शक्ति देगा, और गुस्सा हमेशा के लिए आपके भीतर से समाप्त हो जाएगा।