योग क्या है | Yog kya hai

हमारे भारतवर्ष के गौरवमयी इतिहास में ऐसी अनेकों चीजें हैं, जिससे पूरी दुनिया शिक्षा लेती है। योग विज्ञान भी इसमें से एक है। आज फिर से विश्व का एक बड़ा हिस्सा स्वास्थ्य या अध्यात्म में रूचि के कारण योग की सहायता ले रहें हैं। लेकिन भारतवर्ष की प्राचीन योगविद्या की रूपरेखा आज काफी बदल चुकी है। आज का तबका योग में बताए गए आसनों को ही योग मानते हैं। 'योग क्या है?' जानने के लिए हमें अपने ऋषियों द्वारा दिए गए योग के ज्ञान पर नजर डालनी चाहिए। तो आइए, हम और आप मिलकर जानने की कोशिश करते हैं की 'योग क्या है?'

 

योग क्या है
योग क्या है

• योग क्या है

 आज से हज़ारो वर्ष पहले उपनिषद में ऋषियों ने कहा था कि हमारी इन्द्रियाँ शरीर के बाहर की ओर स्थित हैं, इसलिए हम हमेशा बाहर ही प्रवृत रहते हैं। हमारा मन और बुद्धि बाहरी दुनिया के ही शोर-शराबे में डूबा रहता है। संसार के परिवर्तन हमें सुख और दुःख के बीच दोलायमान रखते हैं। विज्ञान की तमाम सफलताओं के बावजूद हम अपनी प्रसन्नता को स्थायी नहीं रख पाएं हैं। लेकिन हमारे पूर्वजों ने एक ऐसी प्रक्रिया का अविष्कार किया था , जिससे मन सदा शांत और प्रसन्न बना रह सकता है। यही प्रक्रिया योग है।

(इंद्रियों पर नियंत्रण कैसे करें

महर्षि पतञ्जलि के अनुसार, योग की परिभाषा है, 'योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः', अर्थात, चित्त की वृतियों का निरोध ही योग है। इसका अर्थ यह है कि

योग का शाब्दिक अर्थ है: जुड़ना या सम्मिलित करना। तो, जब हम योग में होते हैं, तो हम अपने शरीर और मन को प्रकृति से जोड़ने की कोशीश करते हैं। जब कोई शरीर और मन प्रकृति से सीधे संपर्क में हो, तो उसकी प्रत्येक गतिविधि, चाहे वो शारीरीक हो या मानसिक हो, प्रकृति के साथ तालमेल में होगी। और तब आप महसूस करेंगे, कि आपके प्रत्येक कार्यों में कोई अलौकिक शक्ति आपकी मदद कर रही है और आप बड़ी सटीकता से सोच पा रहे है। लेकिन वास्तव में यह आपके शारीरिक और मानसिक गतिविधियों के प्रकृति के साथ तालमेल में आने का फल है।

जब आप असल योग में होते हैं तो पूरी प्रकृति आपके साथ मिलकर कार्य करती है, या आप पूरी प्रकृति के साथ कार्य करते हैं। ऐसा होने पर जाहिर सी बात है, आप अपनी क्षमताओं का अधिकतम उपयोग कर पाएंगे।

लेकिन यहाँ एक बात स्पष्टतः समझने की आवश्यकता है कि सिर्फ योग के आसन लगाना असल योग नही है। योगासन आपको योग में लीन होने में मदद कर सकते हैं, लेकिन सिर्फ योगासन करना आपको प्रकृति के साथ नहीं जोड़ती है। हमारे पुराने ऋषियों के अनुसार, मानव इस सृष्टि की रचना का उच्चतम स्वरूप है। इसलिए ऐसा कहा जाता है, कि जो खुद को जान ले वो समस्त ब्रह्माण्ड को जान लेता है। योग भी 'स्व' की जानने की प्रक्रिया की ही एक कड़ी है। 'मैं कौन हूँ?' का उत्तर जानना ही योग की परिणिति है। 

जब आप योग के पराकाष्ठा को छु लेते हैं, तो आप समाधी में लीन हो जाते हैं और संपूर्ण सृष्टि के गूढ़ रहस्य जैसे, जीवन-मृत्यु, सृष्टि की रचना इत्यादि के राज आपके भीतर उद्‌घाटित हो जाते हैं। 

योग कोई धर्म, विचार या धार्मिक आस्था नहीं है। योग तो मानवीय चेतना का विस्तार कर उसे ब्रह्माण्ड की असीमता तक पहुँचाने की एक तकनीक है। 

 हमारे पूर्वजों ने योग मे लीन होने के लिए विभिन्न प्रकार के रास्तें सुझाए हैं। इनमें ही 84 प्रकार के आसन भी शामिल है। योग की शुरुआत से समाधि तक के सफर को पूरा करने में ये 84 आसन अहम भूमिका निभाते हैं।

 आपने यह अवश्य गौर किया होगा, कि जब आप गुस्से मे रहते हैं, तब आपके चलने का या बैठने तरीका कुछ और ही होता है, और जब आप प्रेम में होते हैं तक कुछ और। अर्थात, आपके मन की दशा से अपके शरीर के आसन जुड़े हुए हैं। इसलिए मन को शांतचित और एकाग्र बनाने में कुछ आसन अहम भूमिका निभाते हैं। 

ध्यान भी योग का ही एक हिस्सा है। यदि आप ध्यान को पूर्णतः सिद्ध कर लेते हैं, अर्थात अगर ध्यान का कमल अपके भीतर खिल जाता है, तो फिर आप आसनों से आजाद होकर भी योग कर सकते हैं। ध्यान की सिद्धी के लिए यह आवश्यक है कि आप अपने अस्तित्व के सभी पहलुओं का ईमानदारी से अवलोकन करें। ध्यान के बारे में विस्तृत जानकारी आप यहाँ से भी ले सकते हैं:ध्यान क्या है? ध्यान कैसे करें?

एक बार जब आप आसनों से अजाद होकर योग के काबिल बन जाते हैं तब आप अपनी हर एक गतिविधि मे प्रकृति का स्पंदन महसूस कर पाएंगे। आपका शरीर तथा मन प्रकृति के सीध मे आकर कोई भी कार्य करेगा, तथा आप एक सफल और आनंदमयी जीवन के हकदार होंगे। 

Next Post Previous Post
No Comment
Add Comment
comment url