सुख दुख पर अनमोल वचन।।सुख और दुख की परिभाषा

सुख दुख पर अनमोल वचन


एक कहावत है, बिना बारिश के इंद्रधनुष नही निकलता।

लेकिन बारिश भी इसलिए ही चाहिए ताकि बादलों में पानी की बूंदे सूरज के किरणों को विखंडित करने के लिए मौजूद रहे। इंद्रधनुष तो तब भी नही निकलेगा अगर सूरज ही न हो।
लेकिन, अगर सूरज और पानी की बूंदें हमेशा ही मौजूद रहे तो? 


फिर इन कहावतों का कोई मतलब नही रह जाएगा। आपका जीवन भी ऐसा ही है। आपका जीवन बस मौजूद है और इसकी प्रकृति है सर्वदा आनंदमय रहना।

लेकिन, हमने बाहरी आडंबरों को इतना ज्यादा महत्व देना शुरू कर दिया है, कि हम अपने जीवन की प्रकृति को भी नही समझ पाते। 
भौतिकता के क्षणिक सुखों के लोभ में हम उस शाश्वत अनंदमयता को नजरअंदाज कर देतें है जो अनवरत हमारे अंदर ही है।

हर इंसान जब जन्म लेता है, तो प्रकृति उसे मूलतः दो वरदानों के साथ भेजती है: शरीर और बुद्धि।
जब कोई भी बच्चा पैदा होता है उसका वजन 2 या 3 किलो रहता है। फिर वो वहाँ से बढ़ते-बढ़ते 60, 70 या 80 किलो या इससे भी ज्यादा तक पहुँच जाता है। 

प्रकृति द्वारा दिये गए मनुष्य के इस स्वरूप में उसे वृद्धि ही मिलती है।
बुद्धि के संदर्भ में भी यही बात लागू होती है। अपने बुद्धि के विकास के ही बदौलत इंसान अपने सुविधा के साधन जुटा लेता है। तन ढकने के लिए कपड़े बना लेता है, सुरक्षित रहने के लिए घर बना लेता है।

तो मुद्दे की बात ये है, कि प्रकृति ने हमे जिन चीजो के साथ यहाँ भेजा, उसमे हमें वृद्धि ही मिलती है। कोई अगर यहाँ कुछ खोता है, तो वो जरूर यही से ली हुई होती है। तो फिर रोना किस बात का।

लोगो के अंदर कुछ खोने का एहसास ही उन्हें दुखी करता है। ये एहसास इसलिए ही पनपता है क्योंकि हम उसे सबकुछ मान लेते हैं जो हमारे लिए ज्यादा मायने ही नही रखता।


जब हम कुछ खोते हैं, तो दुख का अनुभव करते हैं, और जब कुछ पाते हैं तो सुख का अनुभव करते हैं। 
इन दोनों ही परिस्थितियों में जो चीज नही बदलती, वो ये है कि हम भौतिक स्तर पर कुछ अनुभव करते हैं।

सुख और दुख की परिभाषा

सुख और दुख अपने मन की एक स्थिति मात्र है। जब तक आप भौतिक चीजों को ही जीवन मे सब कुछ मानते रहेंंगे, तब तक आप उस शाश्वत आनंद को अनुुुुभव नही कर पाएंगे।
जब आप खुद को भौतिकता से परे अनुभव कर पाएंगे तब आप अपने मन की स्थिति को नियंत्रित कर पाएंगे।

आज हर कोई अपने जीवन मे किसी रिमोट संचालित मशीन की भाँति हो गया है। उसके मन के स्थिति की रिमोट किसी और के हाथों में होती है।

कोई लाल बटन दबा दे तो दुखी हो गए, हरा बटन दबा दे तो सुखी हो गए।

हमें इन सब चीजों से ऊपर उठने की जरूरत है, क्योंकि वास्तव में हम ऐसे नही हैं। बल्कि हमने खुद को ऐसा बना लिया है। 
आपने यहाँ जो भी पाया है वो बस सुगमता से रहने का साधन मात्र है। और उन चीजों को इससे ज्यादा महत्व देने की जरूरत भी नही है।

अगर आप इस बात का एहसास कर लेंगे तब आप सुख-दुख की माया को आसानी से समझ भी जाएंगे, और उसे नियंत्रित भी कर पाएंगे।
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