Jeevan mrityu जीवन क्या है।।जीवन और मृत्यु का रहस्य

जीवन और मृत्यु का रहस्य समझने के लिए हमें जीवन के सभी आयामों को गहराई से समझने की जरूरत है। जब तक हम अपने भौतिक और गैर भौतिक जीवन की कार्य प्रणाली नही समझेंगे, तब तक नही जान पाएंगे कि जीवन क्या है। 

जीवन क्या है

जीवन क्या है।।जीवन और मृत्यु का रहस्य
जीवन और मृत्यु का रहस्य

कोई भी जीव जीवित कैसे है और वो मर कैसे जाता है? जीवन और मृत्यु का रहस्य क्या है, ये विज्ञान के लिए आज भी पहेली है। लेकीन हमारे वेद में इसकी विस्तृत व्याख्या है। 

इस ब्रह्मांड का निर्माण 'ॐ' शब्द के स्पंदन से हुआ है, जिसके फलस्वरूप वृहद रूप से ऊर्जाएं उत्सर्जित हुईं। तब पूरा ब्रह्मांड बिना किसी भौतिक कण के ही ऊर्जा के शुद्धतम रूप से हलचल से भर गया। 'ॐ' के स्पंदन से उत्सर्जित ये ऊर्जाएं विभिन्न प्रकार की थीं, लेकिन सबका मूल 'ॐ' ही था। 

फिर लाखों वर्ष बाद जब ब्रह्मांड ठंडा होने लगा और ऊर्जाएं स्थिर होने लगीं, तब विभिन्न प्रकार के ऊर्जाओं से विभिन्न कणों का निर्माण हुआ। लेकिन उसमें एक ऐसी ऊर्जा भी थी जिसके स्थिर होने के लिए वातावरण अनुकूल नही था। फिर काफी लंबे समय बाद पृथ्वी का निर्माण हुआ, और उसके बाद जब पृथ्वी पर धरती, आकाश, जल, आकाश और वायु इन पांच तत्वो से मिलकर बने वस्तु ने इस ऊर्जा को स्थिर होने के लिए अनुकूलता प्रदान किया।

यही ऊर्जा कोई शरीर धारण कर उसे जीवंत बनाती है, एवं इस शरीर का प्रयोग कर ऐसे ही अन्य शरीर उत्पन्न करती हैं। लेकिन उस ऊर्जा की प्रेरणा से जीव शरीर के लाखों वर्षो के क्रम-विकास के बाद मानव शरीर जैसी जटिल संरचना का निर्माण हुआ। 

मानव मष्तिष्क की जटिलता आज तक विज्ञान जगत पूर्ण रूप से समझ नही पाया। इस शरीर मे ऐसे गुण हैं जो उस ऊर्जा को उसे खुद से रूबरू करा सके, एवं बिना किसी शरीर के भी पूर्ण स्थिरता पाने के द्वार खोल सके। यही कारण है कि मानव शरीर को एक वरदान माना जाता है, और जन्म-मरण के चक्र से छूटने जरिया भी।

हमारे भारतवर्ष में ऐसे अनेकों महान ऋषि हुए जिन्होंने इस शरीर और मन की सम्पूर्ण जटिलताओं को समझा एवं खुद को इनसे ऊपर उठाकर अनंत जीवन का हिस्सा हो गए।

अध्यात्म का एक बड़ा ही मशहूर प्रश्न है 'मैं कौन हूँ' यदि आप खुद के लिए इस प्रश्न का उत्तर खोज लेते है तो जीवन और मृत्यु के रहस्य को बहुत हद तक समझ पाएंगे, क्योंकि इस भौतिक शरीर और मन से परे इस 'मैं' को ही मृत्यु के बाद का सफर करना होता है। इस प्रश्न में 'मैं' का अर्थ शरीर या मन से नही है, बल्कि उस जीवन से है जो अगर शरीर से जुदा हो जाता है तो शरीर और मन का भी अस्तित्व समाप्त हो जाता है। लोग इसे ही आत्मा कहते हैं, लेकिन आत्मा शब्द एक्कल इकाई का भाव देता है जबकि जीवन इस शरीर से जुदा होने के बाद अनंत होता है।

जीवन किसी नंबर सिस्टम से गिनती करने की चीज नही है। लोग अज्ञानता में 'एक आत्मा' या 'दो आत्मा' जैसे शब्दों का प्रयोग करते है। जीवन अनंत है बिल्कुल वैसे ही जैसे इस वातावरण में हवा है। जब आप हवा को अपने फेफड़ों में सांस लेकर भरते है, तब वो आपका हो जाता है लेकिन जैसे ही आप सांस छोर देते है वो फिर उसी अनंत का हिस्सा हो जाता है। वैसे ही आप जीवन का एक अंश हैं, जो इस भौतिक आयाम में कायम रहने के लिए इस शरीर से जुड़ा है, लेकिन जीवन अपने आप मे अनंत है।

जीवन और मृत्यु का रहस्य

जीवन क्या है।।जीवन और मृत्यु का रहस्य
जीवन और मृत्यु का रहस्य
मान लीजिए, एक ठहरा हुआ नदी है, शुद्ध पानी का । अब आप अगर उसमे से एक गिलास पानी निकाल लेते है तो ये एक ग्लास पानी आपका हो गया, ये वैसा ही है जैसे आप उस अनंत जीवन मे से थोड़ा सा हिस्सा लेकर जन्म ले लिए हो। अब उस पानी मे नमक या चीनी घोल दीजिये, ये आपके कर्म है।
 अब इस घोल को दुबारा नदी में डाल दीजिए, ये आपका मरना है। लेकिन नदी में जहाँ पे आप उस घोल को डाले हैं, वहाँ से अगर दुबारा एक ग्लास पानी लेते हैं तो आपको पानी मे नमक का भी कुछ मात्रा मिलेगा। ये बिल्कुल वैसे ही है जैसे मरने के बाद नया जन्म लेने पर भी पिछले जन्म के कर्मो का छाप रह जाता है। 

आप इस जन्म मे खुद को जितना संतुलित और कम चंचल बनाकर रखेंगे, उतना ही ज्यादा आपका अगला जन्म आपके पिछले जन्म से प्रभावित रहेगा, और इसका आपको आभास भी समय-समय पर होता रहेगा।
अगर ऊपर के उदाहरण के संदर्भ में देखें तो यह इस प्रकार है कि, उस नदी मे नमक का मात्रा एक ही जगह एकत्रित रहेगा। 

लेकिन अगर आपका यह जन्म संतुलित नही है, तो आपका अगला जन्म इस जन्म के कर्मों के प्रभाव को तो झेलेगा, लेकिन इसका आभास नही हो पाएगा। जिसके नतीजतन, अक्सर लोग अपने दुखों के लिए अपने भाग्य को कोसते रहते हैं। 
लेकिन यदि आपको अपने पिछले जन्म के कर्मों का आभास रहेगा तो आपको यह पता रहेगा कि आपको अकारण कोई दुख क्यों झेलना पड़ रहा है। फिर आप अवश्य ही इस जन्म को और ज्यादा संतुलित बनाने की कोशिश करेंगे एवं सत्कर्म करेंगे। इस प्रकार कुछ जन्मों के बाद आप इतने संतुलित हो जाएंगे कि आप महासमाधि में लीन होकर, इस जन्म-मरण के चक्र से छुटकारा पाकर हमेशा के लिए अनंत का हिस्सा बन जाएं।

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