मृत्यु कैसे होता है। अनसुना रहस्य....

मृत्यु कैसे होता है।


मृत्यु एक ऐसी घटना है जिसके लिए किसी भी तैयारी या कौशल की  जरुरत नहीं है। अगर आप मृत्यु के बारे में कुछ नहीं जानते हैं फिर भी यह आपके साथ सफलतापूर्वक हो जायेगा। लेकिन यह घटना आपके साथ शालीनता से होगी या जबरदस्ती कष्टपूर्वक होगी, यह आपके जीवन की गुणवत्ता और मृत्यु के प्रति आपकी जागरूकता से निर्धारित होगी। 

मृत्यु कोई ऐसी घटना नहीं है जो भविष्य में कभी घटित होगी, बल्कि यह जारी रहने वाली प्रक्रिया है। हर प्राणी जन्म लेने के साथ ही मृत्यु की प्रक्रिया में शामिल हो जाता है, जो किसी दिन पूर्ण हो जाती है। आसान शब्दों में, मृत्यु का अर्थ यही है की आपका भौतिक स्वरुप आपके अभौतिक स्वरुप से अलग हो चूका है। जब आपका शरीर जीवन ऊर्जा को और थामे नहीं रख पाता, तो जीवन इससे अलग हो जाता है। 

विज्ञान के अनुसार, हमारे शरीर में खरबों कोशिकाएँ हैं, तथा प्रत्येक कोशिका अपने आप में जीवित है। ऐसा पाया गया है की किसी इंसान को मेडिकल रूप से मृत घोषित करने के बाद भी कई दिनों तक उसके शरीर का बड़ा हिस्सा जीवित रहता है। मृत्यु के बाद 8 से 10 घंटों तक दिमाग सक्रिय रहता है तथा 10 से 12 दिनों तक मृत शरीर के बाल बढ़ते रहते हैं। कई जगहों पर मृत शरीर में हलचल देखी गयी है, जिससे यह साबित होता है की मृत्यु के बाद भी कुछ समय तक दिमाग बाकी अंगों को नियंत्रित करता है। 
तो, वास्तव में मृत्यु का क्या अर्थ है? मृत्यु कैसे होता है? आज हम गहराई में उतरकर इन्ही प्रश्नों के उत्तर खोजने की कोशिश करेंगे। 

मृत्यु कैसे होता है?

अभी तक हम यह समझ चुके हैं की इंसान के मरने के बाद भी उसके शरीर का बड़ा हिस्सा जीवित रहता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि शारीरिक स्तर पर जिसे हम जीवन कह रहे हैं वो कई अलग स्तरों पर एक प्रणाली है। इसमें भौतिक और अभौतिक दोनों ही तत्व शामिल हैं। हमारे अस्तित्व का अभौतिक हिस्सा ही हमारी भौतिकता की रूपरेखा निर्धारित करता है। 

हम कोई भी भोजन ग्रहण करते हैं यह हमारे शरीर में जाकर एक मानव कोशिका ही बनती है। अगर कोई कुत्ते का भी भोजन खाये तो वह मानव कोशिका ही बनाएगा। एक कोशिका को यह कैसे पता चलता है की मानव कोशिका ही बननी चाहिए? शरीर में अनेक तरह के याद्दाश्त हैं जैसे विकासमूलक याद्दाश्त, कार्मिक याद्दाश्त, अनुवांशिक याद्दाश्त इत्यादि ताकि यह कभी भ्रमित न हो। इस प्रकार, ये सभी स्वतः संचालित होने वाली प्रक्रियाएँ अभौतिक तत्व द्वारा सफल होती हैं। 

असल में हमारे अस्तित्व में अभौतिक तत्व भौतिकता से बड़ा है, तथा यह ऊर्जा है संचालित है जिसे हम जीवन शक्ति के रूप में जानते हैं। योग में इसे ही प्राण कहा जाता है। ये पांच बुनियादी आयामों में खुद को अभिव्यक्त करता है। ये पांच रूप हैं:  1.प्राण वायु,   2.समान वायु,  3.पान  वायु   4.उदान वायु  तथा  व्यान। तो, किसी के मरने का या किसी शरीर से प्राण निकल जाने का यही अर्थ है की भौतिक शरीर से ये पांचो आयाम अलग हो चुके हैं। 

कभी-कभी ऐसा होता है की ये पाँचो आयाम शरीर से एक साथ नहीं जाते हैं, तब मृत्यु बहुत कष्टदायी हो जाती है। ये पांचो आयाम शरीर से किस प्रकार से निकलेंगे यह इस बात पर निर्भर करेगा की व्यक्ति कितना जिवंत है। जब चरण-दर-चरण ये पाँचो शरीर से अलग होते हैं तो इनके अनुपस्थिति के प्रभाव भी शरीर में दिखने शुरू हो जाते हैं, जैसे अकड़ना, सड़ना इत्यादि।
इन पांचो का अलग अलग कार्य है। 

तो, जब ये पाँचो शरीर से एक साथ नहीं निकलते हैं तो मृत्यु कष्टदायी होती है। अक्सर ऐसा होता है की जिसके घर में किसी की मृत्यु होती है तो जब तक मृत शरीर घर में रखा रहता है तब अजीब तरह का ऊर्जा वहाँ आस-पास महसूस किया जा सकता है। ऐसा इसलिए है क्योकि मृत्यु के बाद भी लगभग 14 दिन तक व्यान शरीर के आस-पास भटक सकता है। इसीलिए कुछ संस्कृतियों में मृत शरीर को जलाने तथा 14 दिनों तक विभिन्न प्रकार के अनुष्ठानों को करने का नियम है। इस संस्कृति में यह नियम बना दिया गया था की मरने के 2 घंटे के अंदर दाह-संस्कार कर देना चाहिए। 


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