हमारी कक्षा में जे कृष्णमूर्ति के शिक्षा को कैसे बढ़ावा दें

सामान्यतः, आजकल के बच्चे अध्यात्म से जुड़े लोगों को या दार्शनिक जैसे व्यक्तियों को मजाक के रूप में लेते हैं। कुछ आध्यात्मिक गुरू के रूप में विख्यात गलत लोगों की सच्चाई  सामने आने के बाद अध्यात्म और दर्शन मजाक बन कर रह गया है। हमारे समाज में गुरु शब्द को इस कदर विकृत किया गया है की जो इंसान गुरू के रूप में लोकप्रिय है उसके बारे में बिना जाने भी लोग गलत भ्रांतियां बना लेते हैं, और इससे बच्चे भी अछूते नहीं रहते हैं।

साथ ही प्राकृतिक घटनाओं के लिए विज्ञान के सटीक स्पष्टीकरणों से ध्वस्त हुए अंधविश्वासों की ढेरी पर खड़े होकर बच्चे अध्यात्म पर तथा अध्यात्म की बात करने वाले लोगों पर हँसते हैं, क्योकि उन्हें अध्यात्म का सही ज्ञान नहीं है। तो ऐसे में विद्यालय में बच्चों के बीच एक दार्शनिक के विचारों को कैसे प्रस्तुत करें की बच्चे उन्हें गंभीरता से स्वीकार करें?

जे कृष्णामूर्ति के द्वारा दिया गया दर्शन समाज में फैली सभी कुरीतियों तथा समस्याओं का सटीक निदान है। जे कृष्णामूर्ति के अनुसार, "शिक्षा कुछ पुस्तकें पढ़कर, डिग्री हासिल करके अच्छी नौकरी करना नहीं है। बल्कि शिक्षा इंसान के अस्तित्व के प्रत्येक पहलु जैसे भौतिक, मानसिक, भावनात्मक आदि रूपों का एक साथ विकास होने की प्रक्रिया है।" 

जे कृष्णामूर्ति के व्याख्यान इतने सटीक और तर्कसंगत होते थे, की विश्वभर के वैज्ञानिक भी उनसे मानव प्रवृति के बारे में जानने के लिए घंटों तक उनकी बातें सुनते थे। उन्होंने अपने जीवन काल में अनेक ख्याति प्राप्त वैज्ञानिकों को अपने ज्ञान के लौ से प्रकाशित किया है, जो कृष्णामूर्ति जी की बातों से पूर्णतः संतुष्ट थे। जे कृष्णामूर्ति जी के अधिकांश व्याख्यान यूट्यूब पे उपलब्ध हैं, जिनमे वैज्ञानिकों के साथ हुई बातचीत भी शामिल है।  

जे कृष्णामूर्ति की संक्षेप जीवनी

तो, जे कृष्णामूर्ति के दिए गए शिक्षाओं को बच्चो के बीच रखने से पहले जे कृष्णामूर्ति की इन सभी उपलब्धियों से उन्हें अवगत कराएं। साथ ही वैज्ञानिकों के बीच जे कृष्णामूर्ति की लोकप्रियता के बारे में बच्चों से चर्चा करें ताकि बच्चे विज्ञान के ही बहाने उनसे कनेक्ट हो पाएं। किसी की भी बातों को सुनने और समझने के लिए यह जरुरी है की हम अपने सभी निष्कर्षों को साइड में रख दें। क्योंकि अगर आप अपने ही निष्कर्षों को केन्द्रस्थ करके किसी की बातों को सुनेंगे तो आप कुछ नया हासिल नहीं कर पाएंगे। इसलिए ये आवश्यक है की बच्चों के भीतर अध्यात्म को लेकर जो भ्रांतियां बनी हुई है उन्हें बदलने की कोशिश करें।  

अध्यात्म की राह पर चलने का यह अर्थ होना चाहिए की आप स्वयं की खोज की राह पर हैं, अपने अस्तित्व के प्रत्येक पहलू को अपनी चेतना में शामिल करने की राह पर हैं ना की किसी भगवान् पर आँख बंदकर यकीन करना। अध्यात्म भी आपका उतना ही ध्यान मांगता है जितना फिजिक्स का कोई मुश्किल सवाल। तो बच्चों के सामने अध्यात्म को एक खोज के रूप में रखें जिसमे जे.कृष्णामूर्ति की शिक्षा उनका मार्गदर्शन करेंगी। 

बच्चों को यूट्यूब के माध्यम से उनके व्याख्यानों को सुनने लिए प्रेरित करें, खासकर वैज्ञानिकों  संग उनकी चर्चाओं को सबके बिच में चलाएं। बच्चें जब वैज्ञानिकों को जे कृष्णामूर्ति की बातें ध्यान से सुनते पाएंगे तो उनका रुझान कृष्णामूर्ति जी की ओर बढ़ेगा। भले ही शुरुआत में बच्चों को उनकी बातें समझने में मुश्किल हो लेकिन बार यदि रुची जाग जाएगी तो समय के साथ बातें भी समझ में आने लगेंगी। 



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