Andhvishwas kya hai | अंधविश्वास क्या है

अंधविश्वास एक ऐसा रोग है जो हमें सच्चाई से दूर कर देता है, तथा हम बेबुनियाद बातों पर भी  लगते हैं। तो इस पोस्ट हम जानेंगे की अन्धविश्वास का जन्म इंसान में कैसे होता है, तथा अन्धविश्वास का नुकसान क्या हैं?

अंधविश्वास क्या है?

समाज में फैले कुछ ऐसे तथ्य जिनका कोई भी उचित स्पष्टीकरण नहीं होता उसके बावजूद जिसे लोग सच्चाई मानते हैं, उसे अंधविश्वास कहा जाता है। अन्धविश्वास के फैलने अनेक कारण होते हैं। इसका मुख्य कारण होता है, किसी अनजान चीज या घटना के प्रति लोगों में व्याप्त डर। 

जब प्रकृति में कुछ भयभीत करने वाली घटनाएं हम देखते हैं, तथा उसका उचित कारण हमें ज्ञात नहीं होता, तब हमारा दिमाग उसका कुछ न कुछ मतलब स्वयं ही निकाल लेता है। जैसे की पुराने ज़माने में बादल गरजने पर लोग ये मानते थे की इंद्र भगवान क्रोधित हैं। 

इसके अलावा जब सूर्य ग्रहण या चंद्र ग्रहण होता था, तो लोग भयभीत होकर राहु और केतु नामक दैत्य को जिम्मेदार ठहराते थे। और इस तरह की धारणाओं का सबसे बुरा असर ये हुआ की, विज्ञान द्वारा इसकी सच्चाई सामने लाने के बाद भी लोग उस सच्चाई को स्वीकार नहीं कर पाते थे। 

ईसाई समाज में यह धारणा थी की पृथ्वी हमारे और-मंडल के केंद्र में है। परन्तु जब गैलीलियो ने यह पता लगाया की हमारे सौर-मंडल के केंद्र में पृथ्वी न होकर सूर्य है, तो पूरा ईसाई समाज गैलीलियो का  दुश्मन बन गया। उस महान वैज्ञानिक को अनेकों प्रताड़नाएं दी गयी, जिसके कारण अंततः उनकी मृत्यु हो गयी। 

प्राचीन काल से ही कुछ अंधविश्वासों का जड़ इतनी गहराई तक जम गया है की उसको जड़ से उखाड़ना लगभग नामुमकिन सा प्रतीत होता है। यहाँ तक अक्सर पढ़े-लिखे लोग भी अपनी धर्म में आस्था का हवाला देकर अजीबो-गरीब अंधविश्वासों पर भी यकीन करते हैं। 

समाज में अन्धविश्वास व्याप्त होने का सबसे अहम मुसीबत ही यह है की अक्सर अन्धविश्वाश की आर में बेगुनाह को भी काफी कुछ झेलना पड़ता है। हिन्दुस्तान के कुछ गांवो में आज भी बीमार को भुत-बाधा से ग्रसित बताकर, उसको विभिन्न प्रकार से प्रताड़ित किया जाता है। कहीं-कहीं तो इतना हद है की, विधवा औरतों को चुड़ैल मानकर जिन्दा जला दिया जाता है। 

समाज से इस तरह की बुराइयों को ख़तम करने का यही उपाए है की अंधविश्वास को ख़त्म किया जाए। 

इंसानों के मन में अन्धविश्वास का जन्म कैसे होता है?

इंसानी दिमाग हमेशा अपनी सुरक्षा के प्रति सचेत रहता है। अगर आस-पास कुछ खतरा महसूस होता है , तो यह तुरंत ही उससे बचने के तरीके खोजने लगता है। मष्तिष्क की इस तरह की कार्य प्रणाली सिर्फ इंसानों में ही नहीं, बल्कि जानवरों में भी होती है। 

परन्तु इंसान के मष्तिष्क में कुछ ऐसे आयाम भी हैं जो बाकी जीवों में नहीं पाए जाते हैं। जैसे की इंसान का तार्किक बुद्धि हर चीज की कार्य विधि को समझने और उसका स्पष्टीकरण खोजने के लिए बाध्य होती है। 
इसके अलावा एक अन्य आयाम किसी घटना का स्पष्टीकरण न मिलने पर खुद से ही उसके विभिन्न संभावनाओं का चित्रण करने लगता है, यह है इंसान के कल्पना करने की क्षमता। 

जब मष्तिष्क में डर पूरी तरह से हावी रहता है, तो तार्किक बुद्धि सुन्न पर जाती है हमारा कल्पना हावी हो जाता है।  तब हम सामने आयी मुसीबत से बचने के लिए किसी चमत्कार की ओर देखने लगते हैं, और अगर बच जाते हैं तो उसे चमत्कार ही मानते हैं। लेकिन इसके बाद फिर हम चमत्कार करने वाले को खोजने लगते हैं। इस प्रकार एक के बाद एक  धारणाओं का जाल बुनते चले जाते हैं, और खुद के ही जाल में फंसते चले जाते हैं। 
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