भावनाओं के प्रवाह को संतुलित कैसे करें। How to maintain emotional trauma.
भावनाओं का संतुलन: जीवन की सच्ची समझ
अक्सर लोगों के लिए उनकी भावनाएं ही उनकी सबसे बड़ी दुश्मन बन जाती हैं। भावनाओं के प्रवाह में वे इस कदर फंस जाते हैं कि उससे बाहर निकलना मुश्किल हो जाता है, और यह स्थिति अत्यंत पीड़ादायक भी होती है। तो आज हम इस विषय पर विचार करेंगे कि ऐसी परिस्थितियों में इंसान को क्या करना चाहिए, भावनाओं को संतुलित कैसे रखा जा सकता है और इनका दिमाग पर नकारात्मक प्रभाव पड़ने से कैसे रोका जा सकता है।
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भावनाओं के प्रवाह को कैसे नियंत्रित करें |
भावनाओं के प्रवाह को संतुलित कैसे करें?
भावनाएं इंसान के जीवन का उतना ही महत्वपूर्ण हिस्सा हैं जितना कि यह शरीर। कभी-कभी ये शरीर से भी अधिक महत्वपूर्ण हो जाती हैं, और लोग भावनाओं के प्रभाव में अपने जीवन तक का बलिदान करने को तैयार हो जाते हैं। प्रत्येक आत्महत्या के पीछे मन की गहरी चोट ही प्रमुख कारण होती है, क्योंकि व्यक्ति प्रतिकूल भावनाओं के तूफान को संभाल नहीं पाता।
भावनाएं जीवन में मिठास घोलने का कार्य करती हैं, लेकिन जब ये नियंत्रण से बाहर हो जाती हैं तो जीवन में कड़वाहट और संघर्ष उत्पन्न कर सकती हैं। यदि भगवान आपसे पूछें कि आप जीवनभर केवल सुख का अनुभव करना चाहेंगे या दुख का, तो आपका उत्तर निश्चित रूप से सुख होगा। परंतु, हम सभी जानते हैं कि भावनाएं कभी सुखद होती हैं तो कभी कड़वी। जीवन का वास्तविक अनुभव इन्हीं खट्टे-मीठे एहसासों का संतुलन बनाए रखने में है।
भावनाओं का वास्तविक स्रोत
अगर आप गहराई से विचार करें, तो आप पाएंगे कि आपके भीतर पैदा होने वाली हर भावना का स्रोत आपके विचार ही हैं। अगर आपको किसी से प्यार होता है तो वह भी आपके विचारों से ही उत्पन्न होता है, अगर नफरत होती है तो वह भी आपके विचारों से ही निकलकर आती है। अगर किसी इंसान का सुंदर होना, उच्च विचारों का होना या अमीर होना ही आपके भीतर उसके लिए प्यार उत्पन्न कराने के लिए पर्याप्त होता, तो आपको मिस वर्ल्ड, किसी दार्शनिक या फिर दुनिया के सबसे रईस इंसान से प्यार होता, न कि अपने क्लास या मोहल्ले के किसी साधारण व्यक्ति से।
कहने का अर्थ यह है कि आप ही हैं जो अपने भीतर किसी भी प्रकार की भावनाओं को जन्म देते हैं। अगर ऐसा है और फिर भी आपके भीतर जहरीली भावनाएं कभी न कभी पैदा हो रही हैं, तो उसका कारण कौन है?
भूल जाइए कि आपके प्रेमी या प्रेमिका ने आपको धोखा दिया है, या आपके जान से प्रिय भाई ने आपकी संपत्ति हड़प ली। क्या अब भी आप उन्हें दोष दे पाएंगे कि उन्होंने ही आपके मन को इतना आहत किया कि आप आत्महत्या के बारे में सोचने लगे?
बाहरी घटनाओं की तुलना में आंतरिक प्रतिक्रिया अधिक महत्वपूर्ण है
बाहरी दुनिया में भौतिक रूप से कोई आपको परेशान करता है या किसी भी प्रकार की तकलीफें देता है, तो उससे लड़ने के कई तरीके हो सकते हैं और आप अपने अनुसार कोई भी तरीका चुन सकते हैं। उदाहरण के लिए, अगर आपके भाई ने आपकी जमीन हड़प ली तो आप यह तय कर सकते हैं कि आपको कानूनी रास्ता अपनाना है या कोई और तरीका चुनना है।
परंतु जिसे आपने अपने दिल में बैठा रखा था, वह अपनी मर्जी से कुछ ऐसा करता है जिसकी आपको उम्मीद नहीं थी, जिसे आप घृणित मानते हैं, जिसके बदले आप मरना पसंद करेंगे लेकिन उसे स्वीकार नहीं करेंगे। यदि ऐसा कुछ हो जाता है, और इसके बदले आप पीड़ा अनुभव कर रहे हैं, तो इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा? वह इंसान जिसने अपनी मर्जी से, अपनी बुद्धि से कोई कदम उठाया? (यह बाद की बात है कि उसने सही किया या गलत, लेकिन महत्वपूर्ण यह है कि उसने अपने मन के हिसाब से कुछ किया, और आपका मन व्यथित हो उठा)।
भावनाओं के प्रवाह को नियंत्रित कैसे करें?
- विचारों की समझ विकसित करें - जब आप यह समझने लगेंगे कि आपके विचार ही आपकी भावनाओं के मूल कारण हैं, तब आप उन्हें नियंत्रित करना शुरू कर सकते हैं।
- दोष देना छोड़ें - जब भी कोई परिस्थिति प्रतिकूल होती है, तो हम दूसरों को दोष देने लगते हैं। लेकिन वास्तविकता यह है कि हम स्वयं ही अपनी भावनाओं के जिम्मेदार हैं।
- ध्यान और आत्मनिरीक्षण करें - नियमित ध्यान और आत्मचिंतन आपको अपने भीतर शांति स्थापित करने में सहायता करता है।
- स्वस्थ संवाद अपनाएं - अगर कोई समस्या है, तो अपने विचारों को सही तरीके से व्यक्त करें। संवाद से ही समस्याओं के समाधान निकलते हैं।
- स्वास्थ्य और संतुलित जीवनशैली अपनाएं - शरीर और मन का संतुलन बनाए रखने के लिए योग, ध्यान और संतुलित आहार अत्यंत आवश्यक हैं।
निष्कर्ष
भावनाओं पर नियंत्रण पाना आसान नहीं है, लेकिन यह असंभव भी नहीं है। यदि आप समझ जाएं कि हर भावना आपके ही विचारों से उत्पन्न होती है, तो आप अपने मन को प्रशिक्षित कर सकते हैं। बाहरी परिस्थितियां हमेशा अनिश्चित रहेंगी, लेकिन आपका आंतरिक संतुलन आपको हर स्थिति में स्थिर बनाए रख सकता है। इसलिए, अपने जीवन को भावनाओं का दास बनने न दें, बल्कि उन्हें अपने विकास का माध्यम बनाएं।