सातों चक्र जागृत होने पर क्या होता है?
सातों चक्र जागृत होने पर क्या होता है?
हमारे शरीर में सात चक्र होते हैं:
मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपुर, अनाहत, विशुद्ध, आज्ञा और सहस्त्रार। आइए जानते हैं इन चक्रों के बारे में।
सात चक्रों की शक्तियां
इनकी शक्तियां असीमित हैं और उनकी व्याख्या करना एक दिन में संभव नही। लेकिन अगर मोटे तौर पर कहा जाए, तो सातों चक्रों की जागृति के बाद इंसान सम्पूर्ण भौतिक्ताओं से ऊपर उठकर 'स्व' का दर्शन कर पाता है।
ये ऐसा होता है जैसे आपने भौतिक्ताओं को धारण किये हुए ही मृत्यु का एहसास पा लिया हो। या दूसरे शब्दों में, उसके बाद आपके लिए जीवन और मृत्यु जैसी किसी चीज का अस्तित्व नही रह जाएगा, बस और बस आप रहेंगे।
क्योंकि आखिरकार मृत्यु उसे ही माना जाता है जब जीवन अपने सभी भौतिक पहलुओं जैसे शरीर, मन, भावनाएं इत्यादि छोड़कर दूसरे आयाम में चला जाता है। वही जीवन आप हैं। वही जीवन सबमे है।
उस जीवन को परमात्मा का अंश भी कहा गया है। और परमात्मा का निवास कण-कण में है, ऐसा बताया गया है। ऐसा इसलिए कहा गया है क्योंकि जो साधक अपने सातों चक्र को जागृत कर लेता है, वह स्वयं को कण-कण में अनुभव कर सकता है।
भौतिक विज्ञान में पहले परमाणु को सबसे सूक्ष्म कण माना गया, और कहा गया कि हर चीज इससे ही मिलकर बनी है, इससे ज्यादा सूक्ष्म और कुछ भी नही है। जैसे जैसे समय बिता, हमें यह पता चला कि परमाणु से भी सूक्ष्म बहुत सारे कण हैं। अब भौतिक विज्ञान भी सबसे सूक्ष्मतम की खोज में जुटा हुआ है।
वो ऊर्जा जो सबसे सूक्ष्मतम है(जीवन ऊर्जा), उसका एहसास आप कर सकते हैं, अपने सातों चक्रों को जागृत करके। और तब आप स्वयं को कण-कण में अनुभव कर सकते हैं। परमात्मा का कण-कण में वास होने का यही अर्थ है। अहम ब्रह्मास्मि मंत्र भी सातो चक्रों के जागरण से ही प्रेरित है।
सात चक्रों कैसे जागृत कर सकते हैं?
इन चक्रों की शक्ति और इन्हें जागृत करने की योग प्रक्रिया इसलिए ही आज राज बन गया है, क्योंकि हमने ही इसे राज बना दिया है।
हम भौतिक्ताओं को सबकुछ मान लेते है और स्वयं की ही बुनियादी गतिविधियों को समझने की भी कोशिश नही करते हैं।
हम अपने शरीर के बारे में तो कह सकते हैं, कि हम इसे कुछ हद तक जानते है, क्योंकि जब आप कुछ खाते-पीते हैं, तो आप ये समझने की कोशिश करते हैं कि कौन सा पदार्थ आपके शरीर को हानि पहुंचा सकता है, और कौन शरीर के लिए लाभकारी है।
आप जिस चेतना के प्रेरणा से अपने शरीर की इन गतिविधियों का निरीक्षण करते हैं, वह आपके अस्तित्व के शारीरिक पहलू से परे है।
लेकिन आपकी भावनाएं कैसे काम करती है? हर तरह की भावनात्मक बदलाव जो आपके भीतर घट रही है, उसका स्रोत आपके बाहर की चिजें हैं। ये कैसे संभव है?
क्या आपकी भावनाएं कोई रिमोट संचालित खिलौना है? अगर लाल बटन दबा दिया तो रोने लगे, और अगर हरा बटन दबा दिया तो हँसने लगे। क्या आपकी यही प्रकृति है ?
बेशक नही है। बस हम इन बातों पर ध्यान ही नही देते।
जब तक हम अपने भौतिक पहलूओ को ही पूरी तरह नही समझ सकते, तब तक सात चक्रों की विशालता कैसे समझ पाएंगे? यही सब वजह है जिनकी वजह से आज यह योग रहस्य बन चुका है।
जब आप स्वयं की इन बुनियादी प्रक्रियाओं पर ध्यान देंगे, और इनकी कार्य प्रणाली समझ जाएंगे तब आपको ध्यान लगाने के लिए कुछ करने की जरूरत नही रहेगी। किसी योगी की भाँति आप स्वतः ही ध्यान की अवस्था मे पंहुच जाएँगे। तब शुरू के पांच चक्र:
मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपुर, अनाहत, विशुद्ध,
स्वतः ही जागृत हो जाएंगे।
आज्ञा चक्र और सहस्त्रार चक्र को आपकेे खुद से जागृत नही करना चाहिए। क्योंकि ये बहुत शक्तिशाली होते है, इसलिए थोड़ी सी भी गलती आपको बरबाद कर सकती है। लेकिन अगर सही तरीके से कर लेते हैं, फिर आपको किसी चीज की आवश्यकता नही। जीवन के सारे आयामों के दरवाजे खुल जायेंगे।
इन दो चक्रों की जागृति के लिए जटिल योग प्रक्रियाएं हैं।
इसलिए इन्हें किसी योग्य गुरु के निरीक्षण में ही अभ्यास करना चाहिए।