कर्म का अर्थ || मोक्ष के लिए कर्म-बंधन से मुक्ति कैसे पाएं?

कर्म का अर्थ

कर्म का अर्थ


कर्म का आसान अर्थ काम होता है। आपका उठना, बैठना, बात करना, सोना, सोचना, मनन करना इत्यादि हर तरह की शारीरिक और मानसिक गतिविधि कर्म है। आप बिना कर्म किये जीवन के बुनियादी कार्यो को भी पूरा नहीं कर सकते हैं। तो ऐसे में किसी के भी दिमाग में एक सवाल आएगा की जब हम कर्म के बिना जी ही नहीं सकते हैं तो कर्म से मुक्ति कैसे पा सकते हैं? मोक्ष प्राप्त करने के लिए  प्रकार के कर्म से मुक्ति आवश्यकता है? तो आएये जानते हैं कर्म का अर्थ क्या है? तथा कर्म से कैसे मुक्ति पा सकते हैं?

कर्म के द्वारा हम अपने जीवन का निर्माण करते हैं, लेकिन कर्म एक बंधन भी है। कर्म-बंधन एक बहुत ही जटिल संरचना है, जिसे आमतौर पर गलत तरीके से समझा जाता है। इसे आप जितना ही समझना चाहेंगे अथवा कर्म के बंधन से मुक्त होने के लिए जितना ज्यादा प्रयास करेंगे, उतना ही आप इसमें फंसते चले जायेंगे। 

चूँकि आपकी प्रत्येक शारीरिक और मानसिक गतिविधि आपके कर्म के बोझ से जुड़ती चली जाती है, इसलिए आप कर्मा से मुक्ति पाने के लिए जितनी कोशिश करेंगे उतना ही आपके कर्मा का बोझ बढ़ता ही जायेगा। इसलिए यह आवश्यक हो जाता है, की पहले आप यह समझे की जब हम कर्म के बंधन से मुक्त होने की बात कर रहे हैं, तो इसका वास्तव में क्या अर्थ है। क्योंकी जीवन चलाने के लिए आपको कर्म तो करना ही पड़ेगा। तो हम किस प्रकार के कर्म से मुक्त होने की बात करते हैं? आईये देखते हैं!

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कर्म का अर्थ

इस पृथ्वी पर हमारे अस्तित्व में बनें रहने के लिए जितनी भी भौतिक और अभौतिक ऊर्जाएं मिल कर कार्य करती हैं, उन सभी पर हमारे द्वारा किये गए प्रत्येक कर्म का प्रभाव पड़ता है। इन ऊर्जाओं की नियति और गुणवत्ता इस बात पर निर्भर करती है की इनपर किस प्रकार के कर्म का छाप है।

हमारे द्वारा किया गया कार्य हमारे कर्मा से तब जुड़ जाता है, जब वही हमारी पहचान बन जाती है। हम जब कोई कार्य करते हैं, तो हम बस बाहरी दुनियाँ में ही बदलाव नहीं करते, बल्कि उसे अपने व्यक्तित्व के ढाँचे में भी शामिल कर लेते हैं। हम कोई भी कार्य बाहरी दुनिया में कोई बदलाव लाने या अपने जीवन प्रक्रिया को जारी रखने के उद्देश्य से करते हैं। समय के साथ के साथ हमारे सोचने-समझने की प्रक्रिया भी एक खास तरह की हो जाती है। इस प्रकार हमारे किये गए कर्म तथा हमारी एक निश्चित पैटर्न वाली सोच मिलकर हमें एक खास व्यक्तित्व प्रदान करती है। इस तरह के सारे कार्य जो हमारे व्यक्तित्व को निर्धारित करते हैं, वे सभी ही हमारे कर्मा होते हैं। 

अक्सर ऐसा देखा जाता है की किसी सज्जन परिवार में पैदा हुआ बच्चा भी बुरे कर्म में संलिप्त हो जाता है तथा उसे बुरे कर्म करने में मजा आने लगता है। यह पिछले जन्म के कर्मों का परिणाम होता है। जिस प्रकार की प्राण ऊर्जा के साथ बच्चा पैदा होता है, उससे ही प्रेरणा पाकर वह अपने परिवार के मूल्यों को भूलकर, अलग तरह की जीवनशैली में संलिप्त हो जाता है।

कर्म चाहे अच्छा हो या बुरा, अगर इसका छाप जीवन-ऊर्जा पर है, तो यह ब्रह्माण्ड में विलीन नहीं हो सकता। यह जीवन-मृत्यु के चक्र में फंसा ही रहेगा। यही कर्म बंधन है, जिससे मुक्ति मिले बिना इंसान जन्म -मृत्यु के चक्र से नही छूट सकता। जीवन-ऊर्जा के इस संदर्भ में हमारा शरीर, हमारी भावनाएं, हमारी सोच, हमारे एहसास इत्यादि, हमारे अस्तित्व के सभी पहलू ऊर्जा के एक प्रकार हैं। तो अगर आप कुछ सोचते भी हैं तो यह आपके कर्म के ढ़ेर में जुड़ सकता है।

आपका सोचना कर्मा तब बन जाता है जब आप अपने सोच को ढोने लगते हैं। अर्थात्, कुछ गलत विचार मन में आने पर आप खुद को दोषी ठहराते हैं, "ओह ये मैने क्या सोच लिया" " मेरा मन बहुत गंदा है" इत्यादि। इस प्रकार से अगर आप अपने सोच को ढोने लगते हैं तब यह आपके कर्मा में जुड़ जाता है। अपनी सोच को बस 'सोच' की तरह ही देखें, जब तक कोई सोच किसी कार्य में तब्दील नहीं होता तब तक उसका कोई वैल्यू नही होता, इसलिए कोई सोच जिस प्रकार मन में आता है वैसे ही उसे चले भी जाने दें।

कर्म के प्रकार 

जीवन में विभिन्न प्रकार के कर्मों के लिए हमें अलग-अलग परिणाम भुगतने पड़ते हैं। इसके आधार पर ही कर्म की संरचना को समझने और समझाने के लिए इसको तीन भागो में बांटा गया है। 

कर्म तीन प्रकार के होते हैं:

1. प्रारब्ध कर्मा,    2. संचित कर्मा,     3. आगामी कर्मा

संचित कर्मा का अर्थ है जो घटित तो हो चुका है लेकिन उसे बदला जा सकता है। संचित कर्मा के प्रभाव को भविष्य में बदला जा सकता है। 

प्रारब्ध कर्मा उसे कहते हैं, जो घटित हो चुका है और उसे बदल नही सकते अर्थात् उसको भुगते बिना उससे छुटकारा नहीं मिल सकता। 

आगामी कर्मा वह कर्म है, जिसका फल हमें भविष्य  मिलेगा, अर्थात जो कर्म हम वर्तमान में कर रहे हैं, वह आगामी कर्मा है। 

कर्म-बंधन से मुक्ति के उपाए 

अगर आप दुनिया में हो रहे किसी कार्य का अथवा खुद के द्वारा किए जा रहे किसी कार्य का छाप अपनी प्रज्ञा पर नही पड़ने देते, तो वह आपका कर्मा नहीं बन सकता। श्रीकृष्ण कहते हैं, प्रत्येक घटना के साक्षी बनिए, लेकिन किसी भी घटना के साथ साथ खुद का जुड़ाव मत होने दीजिए।

जब आप किसी ऐनक के सामने खड़े होते हैं, तो आप खुद को उसमे देख पाते हैं, लेकिन वहां से हटते ही ऐनक में से आपकी तस्वीर भी हट जाती है। जबकि कैमरा किसी भी तस्वीर को कैद कर लेता है और अपने साथ रखता है। तो, किसी कार्य को कर्मा का बोझ न बनने देने के लिए, हमें ऐनक की तरह होना चाहिए, सभी उपस्थिति अथवा घटनाओं का साक्षी तो बनेंगे, लेकिन किसी का छाप अपनी ऊर्जा शरीर पर इकठ्ठा नहीं होने देंगे।

गीता के माध्यम से श्रीकृष्ण कहते हैं, कर्म करो लेकिन उसको अपने पहचान से मत जोड़ो। अगर आपकी प्रज्ञा आपके किसी कार्य से जुड़ जाती है, तो वह कार्य कर्मा बन जाता है। अपनी चेतना अथवा अपने ऊर्जा के किसी भी स्वरूप को अपने कार्य से प्रभावित हुए बिना अगर आप पूरी दुनिया भी बर्बाद कर देंगे, तो भी यह आपका कर्मा नहीं बनेगा लेकिन ये इतना आसान नहीं होता। इसलिए आपके कार्य दुनिया में जरूरत के हिसाब से होने चाहिए तथा ये आपकी पहचान न दर्शाते हों। 


संपूर्ण महाभारत के दौरान भले ही श्रीकृष्ण ने शस्त्र नहीं चलाए, लेकिन उतने बड़े जनसंहार में उनका भी अहम योगदान था। अर्जुन के गांडीव से निकली प्रत्येक तीर में श्रीकृष्ण द्वारा डाली गई प्रेरणा थी। इसके बावजूद श्रीकृष्ण के ऊपर किसी के हत्या अथवा शकुनि की भाँती छल-कपट का पाप नहीं था। इसका यही कारण था की श्रीकृष्ण ने हमेशा समय और स्थिति के अनुसार फैसला लिया, न की  व्यकित्व के प्रभाव में। 
यही बात श्रीकृष्ण को रहस्यमई भी  बनाती है। वो किस स्थिति में क्या कदम उठाएंगे इसका अंदाजा कोई नहीं लगा सकता था, क्योंकि उनका कोई व्यक्तित्व नहीं था। वो पानी की तरह थे जो परिस्थिति के अनुसार खुद को आसानी से ढाल सकते थे। 

लोग भले ही आपके कार्यों को देखकर आपको किसी खास व्यक्तित्व वाला व्यक्ति माने, लेकिन आप अपने भीतर खुद को किसी भी प्रकार व्यक्तित्व से आजाद रखें। अर्थात्, आपके कार्य जरूरत के हिसाब से होने चाहिए, इसलिए नही क्योंकि आप उसी प्रकार के इंसान हैं। ऐसा होने पर ही आप हर काम करते हुए भी उसे अपने कर्मा के बोझ में जुड़ने से रोक सकते हैं। 

तो, हमने विस्तार से यह जाना की कर्मा का अर्थ क्या है, तथा कर्मा से मुक्ति कैसे पा सकते हैं। अगर ये लेख अच्छा लगा हो तो शेयर जरूर करें।  धन्यवाद!


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