मृत्यु के बाद क्या होता है? मृत्यु के बाद का सत्य

मृत्यु के बाद क्या होता है?

मृत्यु के बाद का सत्य
 मृत्यु के बाद का सत्य

मृत्यु एक ऐसी घटना है जिसे कोई टाल नहीं सकता। यह कभी न कभी सबके साथ अवश्य ही होगा। तो सवाल यह है की मृत्यु के बाद का सत्य क्या है? मृत्यु के बाद क्या होता है? क्या पुनर्जन्म वास्तव में होता है? और अगर होता है, तो एक जन्म से दूसरे जन्म में जाने का आधार क्या है? 

इन सारी बातों को समझने के लिए यह जरुरी है की आप इंसान के अस्तित्व के प्रत्येक पहलू को पूरी तरह समझें। जब हम इंसान के प्रत्येक पहलू की बात करते हैं, तो इसमें शरीर, मन, मनोविज्ञान, भावनाएँ, प्राणिक ऊर्जा इत्यादि इंसान के सारे भौतिक और अभौतिक तत्व शामिल हैं। 

एक इंसान के रूप में हमारी सबसे बाहरी रूपरेखा हमारा शरीर होता है। योग में हम अपने अस्तित्व के प्रत्येक आयाम को शरीर की तरह देखते हैं, क्योंकि इससे समझने और समझाने में आसान होता है। 

तो, योग के अनुसार हम इंसान को पाँच आयामों से निर्मित कह सकते हैं। जो हैं:

१. अन्नमय कोष 

२. मनोमय कोष 

३. प्राणमय कोष 

४. विज्ञानमय कोष 

५. आनंदमय कोष 

अन्नमय कोष भौतिक शरीर को कहते हैं, जो भोजन से निर्मित और विकसित होता है। मनोमय कोष इंसान के मानसिक या मनोवैज्ञानिक पहलु को कहा जाता है। प्राणमय कोष हमारे अस्तित्व के ऊर्जा शरीर को कहा गया है। 

ये तीनों आयाम इंसान के अस्तित्व के भौतिक पहलू हैं। भौतिक शरीर सबसे ज्यादा स्थुल है, मानसिक शरीर भौतिक शरीर से ज्यादा सूक्ष्म है तथा ऊर्जा शरीर मानसिक शरीर से भी ज्यादा सूक्ष्म है, लेकिन ये तीनों ही भौतिक हैं। ये तीनों ही आयाम इंसान के कर्म से प्रभावित होते हैं। शरीर, मन, और ऊर्जा तीनो पर ही कर्म का छाप होता है। 

कर्म ही इन तीनो को आपस में एक दूसरे से जोड़कर रखता है। कर्म बंधन है, लेकिन सिर्फ कर्म के कारण ही आप शरीर में कायम रह सकते हैं और इस भौतिक दुनिया में जी सकते हैं। यही वजह है की आध्यात्मिकता मुश्किल लगती है, क्योंकि आप मुक्त होने का जितना प्रयास करते हैं, आपके कर्म का छाप उतना ही मजबूत होता जाता है (चूँकि प्रयास करना भी कर्म है)। 

अगले दो आयाम, विज्ञानमय कोष और आनंदमय कोष अभौतिक हैं। विज्ञानमय कोष अभौतिक होते हुए भी भौतिक से सम्बन्ध रखता है तथा यह बहुत हद तक भौतिक और अभौतिक के बिच के अवस्था की तरह है। 

आनंदमय कोष पूरी तरह से अभौतिक है तथा इसपर भौतिक बदलाओं का कोई असर नहीं होता। अगर भौतिक शरीर, ऊर्जा शरीर तथा मानसिक शरीर सही स्थिति हों, तब ही ये इसे संभाले रख सकते हैं। यदि ये तीनों सही स्थिति में न रहे तो आनंदमय शरीर ब्रह्मांड का हिस्सा बन जाएगा। 

मृत्यु के बाद का सत्य

तो, मृत्यु के बाद भौतिक शरीर और मानसिक शरीर पूरी तरह से समाप्त हो जाते हैं, लेकिन यदि ऊर्जा शरीर कर्म के छाप से मुक्त नहीं हुआ रहता, तो वह यही रह जाता है और नए शरीर का तलाश करता है। तो किसी की मृत्यु के बाद जिसे लोग आत्मा या भूत कहते हैं वो वास्तव में ऊर्जा शरीर होता है। 

ऊर्जा शरीर की छाप जितनी ज्यादा तीव्र होती है, उसे उतना ही अपने आस-पास महसूस किया जा सकता है। यही कारण है की किसी की अकाल मृत्यु होने पर लोगों को उसके भूत बनने का डर रहता है। एक बूढ़े व्यक्ति की मृत्यु के बाद तथा किसी किसी जवान व्यक्ति के मृत्यु के बाद माहौल में साफ़ अंतर महसूस किया जा सकता है। अकाल मृत्यु होने पर मृतक के घर के आस-पास आप कुछ अलग ऊर्जा महसूस कर सकते हैं। 

दरअसल, साठ वर्ष की आयु तक आप कार्मिक याद्दास्त सिर्फ इकठ्ठा करते हैं। उसके बाद उम्र बढ़ने के साथ-साथ ऊर्जा शरीर से कर्म का छाप क्षीण होता जाता है, इसीलिए बूढ़े व्यक्ति की मृत्यु के बाद उनके अस्तित्व को  महसूस नहीं किया जा सकता। 

तो, आत्मा को लोग जिस प्रकार से समझते हैं वह वैसा नहीं होता। यह बस जीवन ऊर्जा होता है जिसे मृत्यु के बाद एक नया शरीर चाहिए। बिना शरीर और मनस के ऊर्जा शरीर कर्म के बंधन से मुक्त नहीं हो सकता और जीवन-मृत्यु के चक्र में फँसा रहता है। 

एक बार अगर ऊर्जा शरीर कर्म के बंधन के साथ भौतिक शरीर छोड़ देता है, तो वह नए शरीर के मिलने तक उसी बंधन में बँधा रहता है। भौतिक शरीर और मानसिक शरीर के साथ ही कर्म के ढाँचे को ढहाने की सम्भावना होती है। एक सफल योगी या आत्मज्ञानी पुरुष महासमाधि से ही अपने शरीर का त्याग करता है, इससे उसका ऊर्जा शरीर कर्म के बंधन से मुक्त हो जाता है तथा ब्रह्माण्ड का हिस्सा बन जाता है। 

अक्सर आत्मज्ञानी भौतिक दुनिया में कोई प्रयोजन न बचने पर तुरंत ही शरीर त्याग देते हैं। यही कारण है की यह देखने को मिलता है की महान पुरुष ऐसे ही अनायास  मृत्यु को प्राप्त होते हैं। 

तो मित्रों, यह था हमारा आज का विषय। आपके मन में कोई संदेह या सवाल हो तो कमेंट में जरूर लिखें, आपको उत्तर अवश्य दिया जाएगा। 

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